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इंडिया से भारत तक…`भारतीय` बनें

इलाश्री जायसवाल
नोएडा(उत्तरप्रदेश)

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हर वर्ष की भांति एक और स्वतंत्रता दिवस आ गया,हमारे जीवन में नई खुशियाँ और उल्लास लिए हुएl सब एक-दूसरे को शुभकामनाएँ दे रहें हैंl सब तरफ़ तिरंगे की लहर है,तिरंगे की उमंग है,तिरंगे की चमक है,तिरंगे की दमक हैl तिरंगे की आभा से कण-कण सुशोभित हो रहा है,लेकिन मन में एक टीस रह-रह कर उभर रही है कि हमारा देश क्या वास्तव में स्वतंत्र है ? हम जब भी अपने देश का नाम लेते हैं,तो बहुत दर्प से कहते हैं ‘इंडिया’,लेकिन ऐसा क्यों ? बॉम्बे का नाम मुंबई कर दिया गया,मद्रास का नाम चेन्नई कर दिया गया,किंतु हमारा देश इंडिया ही रह गया,भारत नहीं बन रहाl हम आज भी विदेशी भाषा के बोझ को खुशी-खुशी या शान से ढो रहे हैंl यहाँ तक कि आम बोल-चाल की भाषा में भी हम यही कहते हैं इंडिया खेल रही है,इंडिया ने हराया,हमारी नागरिकता इंडियन है,आई एम एन इंडियनआदि-आदिl हमारा देश भारत है,न कि इंडियाl नाम का कभी अनुवाद नहीं होता,वह हर भाषा में समान ही रहता है,तो जब हम अपना देश, अपनी भाषा और अपनी संस्कृति की बात करते हैं,उस समय उसके मूल नाम को क्यों भूल जाते हैं ? हमारी संस्कृति तथा भाषा पहले से ही उच्च श्रेणी का स्थान प्राप्त करने के पश्चात् भी अपने ही देश में अपनाए जाने के लिए संघर्ष कर रही हैl हम आज भले ही आज़ाद हैं, लेकिन फिर भी अंग्रेज़ों के दिए हुए नाम को शिरोधार्य किए हुए हैंl इंडिया नाम अंग्रेज़ों ने अपनी सुविधा के लिए दिया थाl हम आज गुलामी की बेड़ियों को तोड़ चुके हैं,पर हमारे मन-मस्तिष्क का कोई कोना आज भी गुलाम हैl हमारी भाषा और संस्कृति के प्रति हमारे अंदर इतना विरोधाभास भर दिया गया है कि,हम यह सोचते हैं कि हमारा विकास,हमारी उन्नति अंग्रेजी भाषा और पाश्चात्य संस्कृति के बल पर ही सम्भव हैl हम तो घर की मुर्गी दाल बराबर वाली कहावत को ही चरितार्थ कर रहे हैंl अपनी बातें,उसके लाभ,उसका गौरव, उसकी प्रभावोत्पादिकता हमें तभी समझ में आती है,जब वे किसी विदेशी के मुँह से निकलेंl अपनी भाषा में बात करने में भी आज की पीढ़ी को लज्जा आती हैl शिशु के पैदा होते ही उसे अंग्रेजी भाषा के शब्द सिखाए जाते हैंl ‘अंग्रेजी पढ़ेगा,तभी तो बढ़ेगा’,ऐसी मानसिकता के चलते हर इंडियन आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है,पर इससे एक भारतीय कैसे आगे बढ़ेगा ?
मलेशिया प्रवास के दौरान मैंने एक विशेष बात देखीl वहाँ पर सारी सूचनाएं,सारे निर्देश हर जगह उनकी अपनी भाषा ‘मलय’ में लिखी हुईं थींl यहाँ तक कि हर उत्पाद के साथ मिलने वाली सूचना एवं निर्देश पत्रिका भी केवल ‘मलय’ भाषा में ही लिखे हुए होते हैंl कितना अच्छा लगा यह देखकर…इसको शब्दों में नहीं लिख सकतीl मुझे एक भी शब्द नहीं समझ आया सिवाय चित्र संकेतों के,लेकिन फिर भी वहाँ हर जगह से अपने देश के लिए,देश के लोगों के लिए,देश की मिट्टी के लिए अपनेपन की महक आ रही थीl वे जो कहना चाहते हैं, बताना चाहते हैं,सब-कुछ अपनी भाषा मेंl इसका यह अर्थ नहीं है कि वहाँ पर अन्य भाषाएँ नहीं हैं,बिलकुल हैं लेकिन वे अपनी भाषा को सर्वोपरि स्थान देते हैं,तो फिर हम उनकी ही तरह क्या अपनी भाषा को,अपने देश को सर्वोपरि स्थान नहीं दे सकतेl इतनी तो सबसे उम्मीद कर ही सकते हैं कि,आप इंडिया को भारत बनाएँ,इंडियन नहीं भारतीय बनेंl गर्व से सिर ऊँचा करके कहें,हम सब भारतीय हैंl

परिचय-इलाश्री जायसवाल का जन्म १९७८ में २५ जून को हुआ हैl अमरोहा में जन्मीं हैंl वर्तमान में नोएडा स्थित सेक्टर-६२ में निवासरत हैंl उत्तर प्रदेश से सम्बन्ध रखने वाली इलाश्री जायसवाल की शिक्षा-एम.ए.(हिंदी-स्वर्ण पदक प्राप्त) एवं बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-हिंदी अध्यापन हैl लेखन विधा-कविता,कहानी,लेख तथा मुक्तक आदि हैl इनकी रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा पोर्टल पर भी हुआ हैl आपको राष्ट्रीय हिंदी निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार व काव्य रंगोली मातृत्व ममता सम्मान मिला हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी-साहित्य सेवा हैl इनके लिए जीवन में प्रेरणा पुंज-माता तथा पिता डॉ.कामता कमलेश(हिंदी प्राध्यापक एवं साहित्यकार)हैंl

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