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कलियुग का महाकाव्य `ब्रह्म कल्प देवायण`

आरती सिंह ‘प्रियदर्शिनी’
गोरखपुर(उत्तरप्रदेश)
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अपने गुरु अरविंद के आश्रम में मृत्यु पर्यंत रहने वाले डॉ. हजारी द्वारा रचित पुस्तक देवायण को यदि महाग्रंथ कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी,क्योंकि यह पुस्तक वृहत्तम खंडों में लिखी गई है। कुल मिलाकर इसमें १२ खंड है,जिसमें ३६ पुस्तकें हैं। यह भारतीय शास्त्रीय महाकाव्य मीटर अनुष्टुभ छंद में लिखा गया है। इन १२ खंडों में १२००० से अधिक पृष्ठ हैं। पूरे महाकाव्य को ३२ मंडलों में विभाजित किया गया है,जिसे मूनलाइट प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
इसका लिप्यांतरण करने वाले अमिता नथवाणी के शब्दों में अगर हम कहें तो-“त्रेता से द्वापर के अवतरण के अवसर पर महाकाव्य रामायण(वाल्मीकि रचित) प्रकट हुआ,द्वापर से कलयुग में रूपांतरण पर महाकाव्य महाभारत (वेदव्यासजी रचित) प्रकाशित हुआ,अब कलयुग का अंत आसन्न है और हम लोग सतयुग के समीप आ गए हैं। अतः महाकाव्य देवायण प्रकट हुआ है।”
देवायण की रचना के बारे में डॉ. हजारी का यह मानना है कि भगवान शिव जो पिंगल महेश्वर के रूप में है,वह एक सर्वश्रेष्ठ कवि हैं,और वही देवायण को इस संसार में लाते हैं,जिससे सतयुग का आगमन होता है। पिंगल महेश्वर देवताओं तथा ऋषि-मुनियों के लिए अज्ञात,निराकार एवं अदृश्य हैं,क्योंकि हम भगवान शंकर के सिर्फ दो ही रूपों को जानते हैं। पहला जो भोले भंडारी एवं मंगलकारी है,तथा दूसरा जो क्रोधित और तांडव करने वाले हैं।
इस पुस्तक में चारों युगों अर्थात-सत युग,त्रेता युग,द्वापर युग एवं कल युग की यात्रा वर्णन का उल्लेख है। डॉ. हजारी ने यह पुस्तक १९५० के दशक में लिखी थी। इस पुस्तक को अनुवादित किया है अमिता नथवाणी ने।
देवायण ब्रह्म कल्प नामक इस पुस्तक के प्रथम खंड के प्रथम भाग में सत युग के देव सत्यदेव के बारे में लिखा गया है। देवों द्वारा किए गए एक यज्ञ से उनका जन्म होता है और उनके स्पर्श मात्र से सभी प्राणी पूर्ण देवत्व को प्राप्त होते हैं।
देवायण ब्रह्म कल्प के प्रथम खंड के द्वितीय भाग में सत्यदेव का विलुप्त होना दिखाया गया है,जिन्हें बुलाने के लिए देवता यज्ञ द्वारा आवाहन करते हैं। इस भाग में ऋषियों की अपार शक्ति का वर्णन है तथा ऋग्वेद के कुछ मंत्रों का भी सरल भाषा में प्रयोग किया गया है। इसमें सृष्टि के ३ मंडल का वर्णन है,जैसे-ऋषि मंडल,यज्ञ मंडल और बीति मंडल।
देवायण ब्रह्म कल्प के प्रथम खंड के भाग ३ में यह दर्शाया गया है कि द्विता एवं तृता का जन्म किस प्रकार होता है,तथा कलि(कलयुग )किस प्रकार से सृष्टि को प्रभावित करता है। दित्ता एवं तृता के नाम पर ही दो युगों का नाम द्वापर एवं त्रेता युग पड़ा। किस प्रकार ऋषियों के बीच जन्म लेने के बावजूद भी कलि नकारात्मक बलों के प्रयोग के कारण सृष्टि के सत्य के विनाश का कारण बनता है। इस भाग में कलि के शैशव काल का वर्णन है,जिसमें उसके घोर दिव्य विरोधी बनने के कारकों पर विस्तार से कलम चलाई गई है।
कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि,वेद-पुराणों की भांति ही यह पुस्तक पठनीय एवं अनुकरणीय है। इसमें निहित विवरण एवं घटनाएं आपको वैदिक सभ्यता का बोध कराती है। पौराणिक विषयों में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों तथा शोधार्थियों के लिए यह पुस्तक संग्रहणीय है। पुस्तक का आवरण पृष्ठ भी आकर्षक है तथा छपाई उत्तम तकनीक द्वारा की गई है। पुस्तक को जनसाधारण तक पहुंचाने के लिए इसे लघु रुप दिए जाने का प्रयास भी हो रहा है। उम्मीद हीं नही,विश्वास है कि एक दिन यह पुस्तक अवश्य ही जनसामान्य को लाभान्वित करेगी।

परिचय-आरती सिंह का साहित्यिक उपनाम-प्रियदर्शिनी हैl १५ फरवरी १९८१ को मुजफ्फरपुर में जन्मीं हैंl वर्तमान में गोरखपुर(उ.प्र.) में निवास है,तथा स्थाई पता भी यही हैl  आपको हिन्दी भाषा का ज्ञान हैl इनकी पूर्ण शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी) एवं रचनात्मक लेखन में डिप्लोमा हैl कार्यक्षेत्र-गृहिणी का हैl आरती सिंह की लेखन विधा-कहानी एवं निबंध हैl विविध प्रादेशिक-राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कलम को स्थान मिला हैl प्रियदर्शिनी को `आनलाईन कविजयी सम्मेलन` में पुरस्कार प्राप्त हुआ है तो कहानी प्रतियोगिता में कहानी `सुनहरे पल` तथा `अपनी सौतन` के लिए सांत्वना पुरस्कार सहित `फैन आफ द मंथ`,`कथा गौरव` तथा `काव्य रश्मि` का सम्मान भी पाया है। आप ब्लॉग पर भी अपनी भावना प्रदर्शित करती हैंl इनकी लेखनी का उद्देश्य-आत्मिक संतुष्टि एवं अपनी रचनाओं के माध्यम से महिलाओं का हौंसला बढ़ाना हैl आपके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैंl  

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