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कालजयी जीवन्त

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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गाँधी-शास्त्री जयंती विशेष….

अंतर्मन स्वाधीनता, सत्य अहिंसा मंत्र।
शास्त्री गांधी शिष्य गुरु, हिला ब्रिटिश खल तंत्र॥

तन मन धन अर्पण वतन, सत्याग्रह पथ क्रांति।
आज़ादी अरमान बस,सुख वैभव बल शान्ति॥

मुक्ति मिली पराधीनता, भारत हुआ स्वतंत्र।
संविधान गणतंत्र बन,गांधी सच पथ मंत्र॥

खुशियों की नव अरुणिमा, सुखद देश स्वाधीन।
बन प्रकाश उन्नति वतन, सम समाज श्री हीन॥

शिक्षा सब जन हो सुलभ, मिटे तिमिर अज्ञान।
नर-नारी निर्भय सबल, स्वाभिमान सम्मान॥

आन-बान शाने वतन, वीर बहादुर लाल।
कूटनीति शास्त्री सबल, भारत था खुशहाल॥

धीर-वीर गंभीरता, संयम बुद्धि विवेक।
सत्य अहिंसा सादगी, जन-मन दु:ख उद्रेक॥

भारत माँ का रत्न था, शास्त्री देश प्रधान।
संघर्षक साहसी प्रखर, लाल बहादुर आन॥

समरसता औदार्य का, मानवता प्रतिमान।
किया चोट दुश्मन हृदय, चोटिल पाकिस्तान॥

घायल चीनी चोट से, भारत शास्त्री शेर।
तहस-नहस लाहौर तक, किया पाक को ढेर॥

शान्ति दूत श्रीकृष्ण बन, ताशकन्द गतिमान।
फॅंस अभिमन्यु चक्र में, शौर्य वीर अवसान॥

शोकातुर जन गण वतन, साश्रु किसान जवान।
विजय कुसुम मुरझा गया, धुमिल राष्ट्र जयगान॥

भारत जन-मन लाड़ला, शास्त्री वीर सपूत।
नारा जय किसान सृजित,जय जवान आहूत॥

खिले प्रगति भारत सुमन, हो जण गण सुखधाम।
कान्ति शान्ति मुस्कान जग, सुरभि कीर्ति अभिराम॥

शुभ प्रकाश विज्ञान का, अन्तर्मन परमार्थ।
राष्ट्र प्रेम अरमान हिय, जीवन सत् पुरुषार्थ॥

सदाचार जीवन विनत, कर्मवीर धर्मार्थ।
पथ ईमान इन्सानियत, जीता था देशार्थं॥

दिया देश सर्वस्व निज, जीवन बना फ़क़ीर।
गुदड़ी का वह लाल था, बेचा नहीं ज़मीर॥

बड़ा बहादुर लाल था, जनमन का सरताज़।
संविधान सुरभित कमल, लोकतंत्र आवाज॥

सुनहर यादें आपकी, विजय गीत यश मान।
कालजयी जीवन्त बन,भारत हित अवदान॥

गाथा स्वर्णिम त्याग लिख, धेय राष्ट्र कल्याण।
है ‘निकुंज’ कुसमित सुमन, शत-शत बार प्रणाम॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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