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कैसे व्यर्थ जाने दूँ

मानकदास मानिकपुरी ‘ मानक छत्तीसगढ़िया’ 
महासमुंद(छत्तीसगढ़) 
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कारगिल विजय दिवस स्पर्धा विशेष……….


एक-एक इंच जमीन के लिए सारे तन से लहू बहा दिया,
भूख-प्यास में लड़कर केवल सीने में जो गोलियां खाई।
क्षणिक नहीं विश्राम किया,लड़ते-लड़ते प्राण गंवा दिए,
धीर-वीर सैनिकों ने ही हिंदुस्तान की लाज बचाई।
ऐसे वीरों का बलिदान कैसे व्यर्थ में जाने दूँ,
ऐसे वीरों की कुर्बानी कैसे व्यर्थ में जाने दूँll

ऊँचे पर्वत पर जा लड़ना काम कोई आसान नहीं,
बम-बारूद का सामना करना काम कोई आसान नहीं।
कर्म पथ पर खरा उतरना सब जन की औकात नहीं,
जवानी में हँसकर मरना सबके बस की बात नहीं।
जिन्होंने ऐसा करके दिखाया,कैसे उन्हें भुलाने दूँ,
मैं देश के वीरों का बलिदान कैसे व्यर्थ में जाने दूँll

मातृभूमि पर प्राण त्यागना,सबसे बड़ा बलिदान वही,
विजय ध्वज हाथ पकड़ना,सबसे बढ़कर शान वही।
बलिदानियों के पग सर रखना,मेरा एक अरमान यही,
उनका नित यशगान करना,मेरे लिए सम्मान वही।
वीरों की जीती इस धरती में,दुश्मन को क्यों आने दूँ,
मैं देश के वीरों का बलिदान कैसे व्यर्थ में जाने दूँll

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