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क्या देखूं अदा हँसने की

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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कोशिश की इश्क में,हर हद पार करने की
आदत-सी फिर हो गयी,उफ नहीं करने की,
लेते रहे हैं वो हमारे इम्तिहान-दर-इम्तिहान
हिमाकत हमारी जब देखी जुल्म सहने की।

ना कभी बदला था,ना ही कभी मैं बदलूंगा
फिर क्यों कोशिशें हैं उनकी मुझे बदलने की,
कैसे सीख लूं मैं सबक,उनसे चंद दिनों में
ख्वाहिश सदा रही है,उनके साथ रहने की।

मेरे कितने ही ख्वाबों ने यूँ ही दम तोड़ा होगा
हिम्मत ही कहाँ हुई थी मेरी,कुछ कहने की,
इशारों से भला कहीं मैं कैसे कह पाता कुछ
दिनों की नहीं बातें,ये तो थी कई महीनों की।

परवाह ही नहीं थी,जब हमें अपने-आप की
तो क्या परवाह करूं,इन अश्कों के बहने की,
उसकी एक झलक से ही दम निकलता है मेरा
क्या होगा गर,देखूं अदा उनकी हँसने की।

आग लगा दी,उजाड़ी मैंने अपनी ही दुनिया
हसरत थी बस,उसकी दुनिया में बसने की,
उन घने गेसूओं में आखिर पनाह मिल गयी
देखो ये किस्मत खुद ही,जाल में फँसने की॥

परिचय-संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी  विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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