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गंगा नदी की प्रासंगिकता

रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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जनमानस का जीवन जल पर ही निर्भर है, अतः नदियों का महत्व सदियों से न केवल भारत में बल्कि पूरे संसार में है। इसलिए प्राचीन काल में लोग नदियों के किनारे ही अपना जीवन-यापन करते थे। हर सभ्यता का प्रमाण हमें नदियों की घाटी से ही मिलता है।
नदियों की बात आती है तो, गंगा नदी का स्थान सबसे प्रथम माना जाता है। कारण इसकी कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जो किसी अन्य में नहीं। हेमवती, जान्हवी, मंदाकिनी, अलकनंदा, त्रिपथा आदि नाम से सुशोभित पतित पावनी गंगा का नाम यूँ ही नहीं है, क्योंकि इसका पानी विश्व की किसी भी नदी से अलग है। यह भारत के जनमानस में रची-बसी नदी है, तभी तो भारतीय संस्कार से जुड़ा हुआ हर कार्य इसी नदी के किनारे किया जाता है। और यही जन-आस्था मानव के मन में इतनी पैठ गई है कि, लोग जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त इसी नदी से अपना जुड़ाव महसूस करते हैं। शायद यही जुड़ाव आज के परिप्रेक्ष्य में गंगा नदी को दूषित कर रहा है।
ऐसे प्राकृतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो हर नदी का अपना एक इतिहास है, उसका उद्गम स्थल, उसका पथ, उसका अंत। इसी प्रकार गंगा नदी का भी इतिहास न केवल लम्बा है, वरन अनेक किवदंतियों तथा कहानियों से जुड़ा हुआ है।
इसका उद्गगम स्थल उत्तराखंड स्थित उत्तरकाशी जिले का गंगोत्री है। वहाँ से निकलकर गंगा अपना लम्बा सफर तय करती है और अन्त में बंगाल की खाडी़ में जाकर मिलती है। इस नदी के सफर का पथ न केवल भारत में है, बल्कि नेपाल व बांग्ला देश में भी है। बांग्ला देश में इसे पद्मा नदी के नाम से जानते हैं। अतः विभिन्न नामों वाली यह नदी उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश व पश्चिम बंगाल राज्य से होकर बहती है।
अब प्रश्न यह उठता है कि, इसकी प्रासंगिकता क्यों है ? इसकी प्रासंगिकता इसकी पवित्रता है, शुद्धता है। इसका कारण है कि,-इसका पानी इतना शुद्ध है कि, इसमें अन्य जीवाणु मिलाने पर वह मर जाते हैं, ऐसा मात्र विश्वास के आधार पर नहीं, बल्कि विज्ञान के आधार पर भी ब्रिटिश प्रयोगशाला में सिद्ध हो चुका है। अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा में आक्सीजन का स्तर २५ फीसदी ऊँचा है। सालों- साल बोतल में भरकर रखने से भी यह खराब नहीं होता। यह किसी भी नदी की तुलना में कार्बनिक कचरे का १५ से २५ गुणा अधिक तेजी से विघटन करती है। इतनी पावन होते हुए भी गंगा नदी विश्व की पाँचवी प्रदूषित नदी कहलाती है। इसका कारण यही है कि, हमारी पुरानी परम्पराओं की रूढ़िवादी सोच तथा अंधी आस्था ने हमारी नदी की पवित्रता का हनन कर दिया है। हमें अपना स्वार्थ भूलकर नई सोच लेकर इस नदी को माँ समान मानते हुए प्रदूषित होने से बचाना होगा। मूर्तियों का, शवों का, राख-पूजा के फल-फूल का विसर्जन, स्नान-ध्यान आदि प्रथाओं को बदलना होगा। हमें प्रकृति के साथ मिलकर चलना होगा, तभी हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक पवित्र धरोहर दे पाएँगे।
यद्यपि, सरकार द्वारा गंगा विकास प्राधिकरण, नमामि गंगे परियोजना आदि द्वारा गंगा के शुद्धिकरण का उपाय किया जा रहा है, पर इस पर ध्यान देकर सहयोग करना हमारा भी कर्तव्य है, क्योंकि जीवन हम सबका है और जीवन से खिलवाड़ करना आत्महत्या जैसा ही पाप है। गंगा हमारी जीवनधारा है, और हम इसके पोषित। इसलिए जय जय गंगे न केवल वचनों से, वरन् कर्म से भी करना लाजमी है।

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