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‘जय जवान जय किसान’ के प्रणेता

डॉ.अनुज प्रभात
अररिया ( बिहार )
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‘जय जवान जय किसान’ नारे के साथ यादों के वातायन में भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का सादगी से भरा चेहरा उभर आता है। उभर आता है इतिहास का वो पन्ना, जब भारत-पाक युद्ध में भारतीय जवान लाहौर तक पहुँच गए थे। सन् १९६२ में भले ही हिन्दी-चीनी, भाई-भाई वाले, चीन से हम हार गए, किंतु १९६५ में प्रधानमंत्री मंत्री श्री शास्त्री के आत्मबल और भारतीय जवानों के युद्व कौशल ने पाकिस्तान को पराजित कर विश्व को दिखला दिया कि, हम किसी से कम नहीं।

उस काल में खाद्यान्न मामले में हमारी आत्मनिर्भरता उतनी नहीं थी। हमें गेहूं का आयात अमेरिका से करना पड़ता था। ऐसे‌ में १९६५ के युद्ध काल के दौरान जब अमेरिका ने हमें गेहूं देना बंद कर दिया, तब पाकिस्तान से युद्ध जीतने के उपरांत रामलीला मैदान में भाषण देते हुए प्रधानमंत्री मंत्री के रूप में श्री शास्त्री ने एक नारा दिया-‘जय जवान जय किसान’ और इस नारे ने लालबहादुर शास्त्री के नाम से जुड़ कर अमरत्व प्राप्त कर लिया।
बचपन में ही उनके सिर से पिता का साया छिन गया, जिस कारण ननिहाल में रहना पड़ा। वहीं हरिश्चन्द्र हाईस्कूल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद काशी विद्यापीठ पढ़ने चले गए और स्नातक (शास्री) की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने इसके बाद से अपने नाम के आगे लगे जाति सूचक शब्द को हटा ‘शास्त्री’ लगा दिया और लाल बहादुर शास्त्री बन गए।
वे आरंभिक काल से ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी रहे। १९२१ के असहयोग आंदोलन में एक कार्यकर्ता के रूप में थोड़े समय के लिए जेल गए। उसके बाद १९३० में दांडी मार्च और १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
लाल बहादुर शास्त्री के राजनीतिक जीवन का वास्तविक सफर १९२९ में इलाहाबाद आने के बाद शुरू हुआ। यहाँ पथप्रदर्शक पुरूषोत्तम दास टंडन के साथ रहते हुए सर्वप्रथम उन्हें ‘भारत सेवक संघ’ के सचिव का कार्यभार सौंपा गया। इस पद पर कार्य करते हुए पं. जवाहरलाल नेहरू के साथ उनकी निकटता बढ़ी। उनकी कार्यशैली और सादगी से नेहरू जी बहुत ही प्रभावित हुए। जब १९५० में उत्तर प्रदेश की पहली प्रांतीय सरकार बनी तो, प्रथम मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत ने अपने मंत्रिमंडल में लालबहादुर शास्त्री को शामिल किया और उन्हें ‘पुलिस’ और ‘परिवहन’ मंत्रालय का भार सौंपा गया। इन दोनों मंत्रालय में रहते हुए उन्होंने २ महत्वपूर्ण कार्य किए-पुलिस द्वारा भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज चार्ज के स्थान पर पानी की बौछार का प्रयोग आरंभ किया। परिवहन मंत्रालय के अंतर्गत विभाग में प्रथम बार महिला परिचालक की नियुक्ति की। उनके द्वारा किया गया यह प्रयोग संपूर्ण भारत में आज अनुकरणीय है।
उसके बाद पं. नेहरू के नेतृत्व में अखिल भारतीय कांग्रेस का महासचिव बनने के बाद १९५२, ५७ और ६२ के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिए उन्होंने कठिन परिश्रम किया।
१९६४ में जब प्रधानमंत्री पं. नेहरू बीमार पड़े तो बिना किसी पोर्टफोलियो के उन्हें मंत्री बनाया गया और उस अवधि में उन्होंने मैंगलोर पोर्ट की नींव रखी।
अपने प्रधानमंत्रित्व काल में उनकी पहली प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना था और इसमें सफल भी हुए, लेकिन भारत की आर्थिक समस्याओं से प्रभावी ढंग से नहीं निपट पाने के कारण उनकी आलोचना भी हुई। फिर वह वक़्त भी आया, जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते के लिए ताशकंद जाना पड़ा। ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद ११ जनवरी १९६६ की रात को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। आज वे नहीं हैं, लेकिन अपनी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण किया जाता है और ‘जय जवान जय किसान’ नारों के साथ सलाम किया जाता है।

परिचय-एम.ए. (समाज शास्त्र), बी.टी.टी. शिक्षित और साहित्यालंकार सहित विद्यावाचस्पति व विद्यासागर (मानद उपाधि) से अलंकृत राम कुमार सिंह साहित्यिक नाम डॉ. अनुज प्रभात से जाने जाते हैं। १ अप्रैल १९५४ को अंचल नरपतगंज (अररिया, बिहार) में जन्मे व वर्तमान में अररिया स्थित फारबिसगंज में रहते हैं। आपको हिंदी, अंग्रेजी, मैथिली सहित संस्कृत व भोजपुरी का भी भाषा ज्ञान है। बिहार वासी डॉ. प्रभात सेवानिवृत्त (शिक्षा विभाग, बिहार सरकार) होकर सामाजिक गतिविधि में फणीश्वरनाथ रेणु समृति पुंज (संगठन) के संस्थापक सचिव और अन्य संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं। स्क्रीन राइटर एसोसिएशन (मुम्बई) के सदस्य राम कुमार सिंह की लेखन विधा-कहानी, कविता, गज़ल, आलेख, संस्मरण है तो पुस्तक समीक्षा एवं पटकथा लेखक भी हैं। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘बूढ़ी आँखों का दर्द’ (कहानी संग्रह), ‘नीलपाखी’ (कहानी संग्रह), ‘आधे-अधूरे स्वप्न’, ‘किसी गाँव में कितनी बार…कब तक ? (कविता संग्रह) सहित ‘समय का चक्र’ (लघुकथा संग्रह) दर्ज है तो मराठी में अनुवाद (बूढ़ी आँखों का दर्द)भी हुआ है। ऐसे ही कुछ पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं। अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो दलित साहित्य अकादमी (दिल्ली) से बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर नेशनल फेलोशिप (२००८), रेणु सम्मान (बिहार सरकार), साहित्य प्रभा विद्याभूषण सम्मान (देहरादून) और साहित्य श्री (छग), साहित्य सिंधु (भोपाल) आदि सम्मान प्राप्त हुए हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य व हिन्दी भाषा के प्रति भारतीय युवाओं को जागरूक करना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक फणीश्वरनाथ रेणु, बाबा नागार्जुन, मुंशी प्रेमचंद, हिमांशु जोशी और प्रेम जनमेजय हैं। माता-पिता को प्रेरणा पुंज मानने वाले डॉ. अनुज प्रभात का जीवन लक्ष्य साहित्य व मानव सेवा है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-“देश के प्रति हम सभी समर्पित होते हैं, किन्तु देश के विकास के लिए भाषा का विकास आवश्यक है। हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी है और हम उसके प्रति न संवेदनशील हैं और न ही जागरूक। आज निःशुल्क टोल नम्बर पर भी यही बोला जाता है-‘अंग्रेजी के लिए १ दबाएं, हिन्दी के लिए २ दबाएं…।’ हिन्दी के लिए १ दबाएं क्यों नहीं ? बात छोटी है…, पर हमें ध्यान देना चाहिए।”