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बादलों का घर

कृणाल प्रियंकर
अहमदाबाद(गुजरात)
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फिर आज़ जा पहुँचा
बादलों के घर में,
मौसम बारिश का था
मंज़र भी सुहाना थाl
वो भी आ गये थे
करने स्वागत मेरा,
थोड़े काले,थोड़े भूरे
थोड़े उजले दूध जैसे,
एक अलग ही दुनिया है
बादलों कीl
मदमस्त रहते हैं
दौड़ते हैं,
कभी रुकते
कर कोलाहल,
फिर हैं झुकते
इक-दूजे से,
आकर भिड़तेl
आँसू का तन है
विद्युत् का मन है,
अविरत चलते रहते हैं
जहाँ रुक जाते,
वहीं खुशियों की फ़ुहार बरसातेl
कुछ
सिखाते ये बादल
अविरत चलना सिखाते हैं,
सिखाते हैं,
ख़ुद को ख़ाली कर
दूसरों की मदद करनाl
सिखाते हैं
प्यार की ऐसी
परिभाषा,
जिसमें ख़ुद को फ़ना
कर दूसरों को ख़ुशी देनाl
बादलों का ये कारवां ऐसे ही
चलता रहता है,
आप भी कभी जा पहुंचना
उनके घर,मेरी तरहाll

परिचय- गुजरात राज्य के अहमदाबाद के निवासी कृणाल प्रियंकर  ने वाणिज्य से स्नातक की पढ़ाई की है।आप वर्तमान में ग्रामीण विकास विभाग(गुजरात) में कार्यरत  हैं। आपको शुरु से ही कविताओं से विशेष लगाव रहा है,तथा कविताएं पढ़ना-लिखना बेहद पसंद है। आपके लेखन  का उदेश्य मन की खुशी है। 

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