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दाग

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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बैग में रखा मोबाइल जोर-जोर से बज रहा था…वनिता का ध्यान उस ओर गया, उसका छोटा-सा एक्सीडेंट हो गया था, जिसमें उसके चेहरे पर चोट लगने से खून बह रहा था। हास्पिटल में आते ही डॉक्टर ने मरहम-पट्टी कर वनिता को टेबलेट देकर कहा-“३-४ दिन में ठीक हो जाओगी, चेहरे पर निशान रह जाएंगे, पर तुम फिक्र मत करना। यह क्रीम लगाने से ८-१० दिन में वो भी चले जाएंगे।” वनिता ने फीकी-सी मुस्कान चेहरे पर ओढ़ी और ऑटो करके घर की ओर चल दी।
वनिता घर आई तो माँ ने घबराकर पूछा-“क्या हुआ ?यह कैसे लगी…?”
“कुछ नहीं माँ, ऐसे ही छोटा- सा एक्सीडेंट हो गया था। एक गाय सामने आ गई थी, दवाइयाँ ले ली है। मामूली चोट है, हो जाएगी ठीक ३-४ दिन में, डॉक्टर ने कहा है।”
“पर, यह निशान!” माँ ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा। “यह भी ठीक हो जाएंगे माँ, वो भी ठीक, तुम परेशान मत हो।”
वनिता अपने कमरे में पहुंची…, तभी देखा रवि का वीडियो कॉल आ रहा था। उसने झट से मुस्कराते हुए फ़ोन उठाया। जैसे ही रवि ने वनिता का चेहरा देखा, चीख पड़ा-“क्या हुआ तुम्हें, अरे!”
“कुछ नहीं, छोटा-सा एक्सीडेंट हो गया था।” रवि ने एकदम फ़ोन काट दिया, वनिता ने दोबारा लगाया, फिर काट दिया। उसने सामान्य फ़ोन किया-“क्या हुआ ?, तुम वीडियो कॉल क्यों नहीं उठा रहे ?”
“तुम आराम कर लो, अभी मुझे वीडियो काल मत करना, तुम्हारा चेहरा बहुत अजीब लग रहा है। मुझे घिन होती देखकर…।” ऐसा कहते हुए रवि ने फोन काट दिया.l
वनिता को कुछ अजीब लगा…। वो कुछ सोचने लगी। तभी पड़ोस में रहने वाले राजीव की आवाज आई…. “वनिता को क्या हुआ आंटी ? मम्मी बता रहीं थीं एक्सीडेंट हो गया, कहाँ है वो ?”
“अंदर अपने कमरे में। मुँह पर चोट आई है, इसलिए बाहर नहीं आ रही। बोल रही है चेहरे पर दाग अच्छे नहीं लग रहे।”
“तो क्या हुआ उसमें..?” यह कहते हुए राजीव अंदर वनिता के पास पहुँचा। “क्या हुआ तुम्हें ?” उस समय वनिता अपने घाव पर मरहम लगा रही थी। राजीव को देख मुँह फ़ेर लिया, बोली- “तुम जाओ अभी, हम बाद में बात करेंगे। तुम्हें मेरा चेहरा देख कर घिन आएगी…।”
“अरे! कैसी बात करती हो ? तुम मेरी दोस्त हो, तुमसे कैसी घिन! लाओ मैं लगाता हूँ तुम्हें ।” और उसके हाथ से क्रीम लेकर अपने हाथ से घाव पर लगाने लगा। वनिता बहुत ध्यान से उसे देखने लगी। वो जानती थी कि, राजीव मन ही मन उसे प्रेम करता है, पर वनिता ठहरी रवि की दीवानी।रवि उसकी सुन्दरता पर मरता था, जिसके लिए वो सब-कुछ करती थी, जो रवि चाहता था, पर आज…… रवि ने जो व्यवहार किया, वो उसे अंदर तक चुभ गया।
“तुम्हें मेरा चेहरा अजीब नहीं लग रहा ?
“अजीब…! राजीव जोर से हँसते हुए उसका हाथ पकड़ते हुए बोला,-“तुम मेरी दोस्त हो, तुम पूरे जीवन भी ऐसी रहो तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम तो तुम ही हो ना, रंग-रूप तो क्षणिक है। तुम्हारा मन तो अजीब नहीं है ना। रिश्ता आत्मा से होता है, शरीर से नहीं…।”
इधर, रवि ने मिलना तो दूर … वनिता से ठीक से बात करनी भी बंद कर दी, पर राजीव रोज आता। वनिता की देखभाल करता, उससे घण्टों बातें करता। धीरे-धीरे वनिता के चेहरे के दाग गायब हो गए।
आज कॉलेज में उसे रवि दिखा, रवि उसे देखते ही उसकी ओर लपका-“वाह…
तुम्हारे घाव तो बिल्कुल ठीक हो गए। शाम को मिलें…!”
वनिता ने उसकी तरफ बड़ी ही वितृष्णा से देखा, बोली- “पर दिल के घाव उतने ही गहरे हो गए हैं।”
रवि अवाक उसे देखते रह गया। वनिता उसके सामने से, उसके जीवन से निकल गई।

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।