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दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर…

कार्तिकेय त्रिपाठी ‘राम’
इन्दौर मध्यप्रदेश)
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मो.रफी पुण्यतिथि विशेष-३१ जुलाई


जीवन में हर इंसान के सामने कुछ ऐसे लम्हे आते हैं,जिन्हें भुनाकर वह लोकप्रियता के शीर्ष पर आ जाता है तो कभी ऐसे ही मौकों से विमुख हो पतन की और अग्रसर हो जाता है। यही स्वर सम्राट मोहम्मद रफी पर भी लागू होता है। आल इंडिया रेडियो लाहौर के एक मंच कार्यक्रम में बिजली गुल होने पर कुंदनलाल सहगल ने गाने से मना कर दिया और १३ वर्षीय रफी को मौका मिला,तो वहीं १९६९ में रफी के हज जाने पर पंचम दा ने आराधना के गीतों के लिए किशोरकुमार को मौका(रूप तेरा मस्ताना,मेरे सपनों की रानी ..) दिया,बस रफी के गायन का उतार यहीं से शुरु हो गया।
शबनम की बूंदों पर शहद की मिठास लेकर दिल की गहराइयों में उतर जाने वाली दिलकश आवाज के सिकंदर मोहम्मद रफी को हमसे बिछडे़ हुए ३९ वर्ष गुजर गए। ३१ जुलाई १९८० की वह काली रात भारतीय फिल्मों के पार्श्व गायन के क्षितिज पर चमकते दैदीप्यमान सितारे मोहम्मद रफी को हमेशा के लिए हमसे छीन ले गई,और छोड़ गई कभी न भरने वाला अनंत शून्य।
२४ दिसम्बर १९२४ को कोटला लाहौर में जन्मे मोहम्मद रफी ने १३ वर्ष की अल्पायु में ही आकाशवाणी पर अपना पहला गीत गाया,और सिलसिला शुरू हुआ। अंततः १९४४ में फिल्म ‘गाँव की गोरी’ में रफी ने अपने सुमधुर गायन का सफल आगाज किया। फिर ‘लैला मजनूं’ में गायन के साथ साथ रफी ने एक संक्षिप्त भूमिका भी की,तो वहीं फिल्म ‘समाज को बदल डालो’ में इसे दोहराया। हालांकि,लाहौर में बनी पंजाबी फिल्म ‘गुल बलोच’ का ‘सोनिए हीरिए तेरी याद ने बहुत सताया…’ जिसने रफी को प्रसिद्धि दिलाई। दूसरी ओर हिंदी फिल्म ‘जुगनू’ में अभिनेत्री गायिका नूरजहां के साथ-‘यहां बदला वफा का बेवफाई के सिवा क्या है..’,गाकर रफी ने आवाज की दुनिया में तहलका मचा दिया। शनैः-शनैः रफी की आवाज शहर तो शहर,बल्कि सुदूर गाँव चौपाल और पनघटों पर भी गुंजायमान होने लगी।
रफी की आवाज प्रकृति प्रदत्त थी,पूरी तरह संपूर्ण,बर्फ पर तराशी और समुंदर-सी गहराई लिए अंतर्मन को झकझोरती,आवाज ऐसी कि पल में अपने नाद से भागते कदमों को जड़ बना दे,जिसकी आवाज की मिठास और खुशबू फिजां में बिखरी मंद-मंद समीर के साथ अठखेलियां करती प्रतीत होती।
दर्द,वेदना,वियोग में डूबे गीत और ग़ज़लों के साथ-साथ रफी ने उमंग,उल्लास और खुशी के साथ भड़कीले गीतों को भी अपनी आवाज के ताजमहल में कैद किया। आज वर्तमान दौर में प्रदूषित फिल्म संगीत के दौर में संगमरमर-सी साफ-सुथरी,कर्णप्रिय गीतों से संगीत रसिकों को अपना प्रेमी बनाने की कूवत तो बस रफी जैसे कलाकारों के पास ही थी। ‘बैजू बावरा’ के शास्त्रीय संगीत पर तराशे गीत-‘ओ दुनिया के रखवाले..’ हम दोनों का दर्द भरा गीत-‘कभी खुद पर,कभी हालात पर रोना आया’,ससुराल का गीत ‘तेरी प्यारी-प्यारी सूरत को किसी की नजर न लगे’ और ब्रह्मचारी का गीत-‘दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर..’ जैसे मदमस्त गीत युवा प्रेमियों की जुबान पर थिरकने लगे।
फिल्म पुनर्मिलन का गीत-‘पास बैठो तबियत बहल जाएगी’ गीत गाकर मोहम्मद रफी ने संगीतप्रेमियों के दिल में अजीब-सी कशिश पैदा की। शम्मी कपूर पर फिल्माए गीत-‘ओ हसीना जुल्फों वाली(फिल्म-दिल दे के देखो)’, ‘जंगली’ का-‘चाहे कोई मुझे जंगली कहे…याहू’ की गूंज शम्मी के व्यक्तित्व के मुताबिक रंग जमाने में सफल रही। रफी की आवाज का जादू सिर चढ़कर बोलने लगा,रफी के गीतों में सहजता, लोचता व मिठास का मिश्रण था। मोहम्मद रफ़ी ने ‘कर चले हम फिदा जानेतन साथियों,अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों,’ ‘जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा..,’ और ‘इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के..’ जैसे राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत गीतों को अपनी आवाज की मिठास से सराबोर कर राष्ट्रीय एकता की भावना को अमलीजामा पहनाया। मोहम्मद रफी ने अपने स्वर्णिम काल में राज कपूर,राजकुमार,दिलीप कुमार,शम्मी कपूर, सुनील दत्त,राजेंद्र कुमार,धर्मेन्द्र,जितेन्द्र, देवानंद और महमूद जैसे सितारों को अपनी मर्यादित आवाज से यादगार बना दिया। सुनील दत्त पर फिल्माई गई ग़ज़लों में रफी ने अजीब-सी कशिश और दिल को छू लेने वाली आवाज से इस तरह सराबोर कर दिया मानो कोई झरना उत्छृंखलता के साथ बहे जा रहा हो।
रफी बहुत ही मासूम,सहज,मिलनसार और प्रभावी व्यक्तित्व के धनी कलाकार थे। गरीबों के हमदर्द रफी ने हिंदी के ख्यात कवियों और उर्दू के शायरों की कलमबद्ध रचनाओं को अपनी आवाज देकर जनसामान्य तक पहुंचा दिया।उन्होंने भारतीय आम दर्शकों को ही नहीं,बल्कि विदेशों में बसे हिंदीभाषी संगीत प्रेमियों में भी संगीत की अभिरुचि जागृत कर दी। ४४ वर्षों के सफर में मोहम्मद रफी ने ३५ से अधिक भाषाओं के ३० हजार से अधिक गीत गाए ( लगभग २५ हजार हिन्दी)। फिल्म ‘चौदहवीं का चाँद’ का गीत-‘चौदहवीं का चाँद हो या आफताब हो(१९६०)’ के लिए इनको पहला फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। फिल्म ‘दोस्ती’ के गीत “चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे..’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का फिल्म फेयर सम्मान मिला। १९६५ में रफी को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
१९६६ में फिल्म ‘सूरज’ के-‘बहारों फूल बरसाओ..’ व १९६८ में ‘ब्रह्मचारी’ के मदमाते गीत ‘दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर..’ व फिर ९ वर्ष बाद फिल्म ‘हम किसी से कम नहीं के’ गीत ‘क्या हुआ तेरा वादा..’ के लिये मोहम्मद रफी को सर्वश्रेष्ठ गायक का श्रेय मिला।
रफी की विदाई एक खालीपन छोड़ गई,जो कह गये-‘तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे,जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे,संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे…’ आज भी सार्थक है। उनके गाये गीतों में वही मदहोश कर देने वाली खुमारी, ताजगी व शहद-सी मिठास आज भी बरकरार है।

परिचय–कार्तिकेय त्रिपाठी का उपनाम ‘राम’ है। जन्म ११ नवम्बर १९६५ का है। कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) स्थित गांधीनगर में बसे हुए हैं। पेशे से शासकीय विद्यालय में शिक्षक पद पर कार्यरत श्री त्रिपाठी की शिक्षा एम.काम. व बी.एड. है। आपके लेखन की यात्रा १९९० से ‘पत्र सम्पादक के नाम’ से शुरु हुई और अनवरत जारी है। आप कई पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य और फिल्म सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। लगभग २०० पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। आकाशवाणी पर भी आपकी कविताओं का प्रसारण हो चुका है,तो काव्यसंग्रह-‘ मुस्कानों के रंग’ एवं २ साझा काव्यसंग्रह-काव्य रंग(२०१८) आदि भी प्रकाशित हुए हैं। काव्य गोष्ठियों में सहभागिता करते रहने वाले राम को एक संस्था द्वारा इनकी रचना-‘रामभरोसे और तोप का लाईसेंस’ पर सर्वाधिक लोकप्रिय कविता का पुरस्कार दिया गया है। साथ ही २०१८ में कई रचनाओं पर काव्य संदेश सम्मान सहित अन्य पुरस्कार-सम्मान भी मिले हैं। इनकी लेखनी का उदेश्य सतत साहित्य साधना, मां भारती और मातृभाषा हिंदी की सेवा करना है।

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