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दुःखी की मदद करना भी साहित्य सृजन का सौंदर्यबोध-प्रो. आच्छा

भोपाल (मप्र)।

केवल मुट्ठी तानना और सत्ता का प्रतिरोध ही लेखन का सौंदर्यबोध नहीं, अपने लेखन में पीड़ित के साथ अपनी प्रतिबद्धता, करुणा और दुःखी व्यक्ति के साथ खड़े होना उसकी मदद करना भी साहित्य सृजन का सौंदर्यबोध है। करुण, संवेदना में भी रंजक तत्व होते हैं, यह भाव पाठक के मन में गहरे तक उतरते हैं।
यह कथन वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक प्रो. बी.एल. आच्छा ने लघुकथा शोध केंद्र समिति द्वारा आयोजित पुस्तक पखवाड़े के दशम दिवस डॉ . बलराम अग्रवाल की आलोचना कृति ‘कथा काल और प्रवृत्तियाँ’ एवं डॉ. जितेंद्र जीतू की कृति ‘समकालीन लघुकथा का सौंदर्य शास्त्र एवं समाज शास्त्रीय सौंदर्यबोध’ पुस्तक परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए।
चर्चा करते हुए साहित्यकार और समीक्षक मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दीक़ी ने इस संग्रह को लघुकथा लेखकों के लिए एक ज़रूरी दस्तावेज ही नहीं, बल्कि संविधान बताते हुए इस कृति को सभी पाठकों को अध्ययन करने की सलाह दी। डॉ. अग्रवाल की कृति पर समीक्षक घनश्याम मैथिल ‘अमृत’ ने कहा कि, कृति में कथा और लघुकथा के आदिम काल से समकालीन तक की यात्रा का विशद विश्लेषण है और यह निश्चित ही लघुकथा के विद्यार्थियों व शोधार्थियों के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होगी।

आयोजन में लेखकद्वय ने आभार प्रकट करते हुए बात रखी। राधेश्याम भारतीय, मनोज कुमार जैन, डॉ.शील कौशिक, राज बोहरे आदि साहित्यकार मित्रों ने भी टिप्पणियाँ दी।