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ध्रुव सत्य यही

राधा गोयल
नई दिल्ली
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क्यों हम केवल एक दिवस ही वैलेंटाइन दिवस मनाएँ ?
जबकि मेरे देश में तो यह सदियों पुरानी परम्परा है।

जब बसन्त की रुत आती,
मौसम हो जाता बासन्ती
भँवरे तितली पर मंडराते,
तितली फूलों पर मंडराती।

मौसम की मादकता से मुग्ध,
प्रेमी जन प्रेम राग गाते
एक-दूजे के आलिंगन को, आतुर से विटप नजर आते।

वृक्षों पे लदे फूलों को देख,
मन पुलकित हो नर्तन करता
टेसू पलाश अपनी खुशबू से, मन को सराबोर करता।

मौसम अंगड़ाई लेता है,
हर पात-पात इतराता है
पेड़ों पे लदे फूलों को देख,
ये मन मयूर हर्षाता है।

यह एक दिवस का पर्व नहीं, मदनोत्सव एक माह का है
विविध-विविध त्यौहार यहाँ, हर रोज यहाँ उत्सव-सा है।

भाषा और बोली अलग हैं, फिर भी मिलकर पर्व मनाते हैं
त्यौहारों के कारण ही हम,
ग़म बड़े-बड़े सह जाते हैं।

ध्रुव सत्य यही है भारत का,
तुम मानो चाहे न मानो।
ऐ आज की आधुनिक औलादों,
निज संस्कृति को भी पहचानो॥