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लो चल पड़ी

राधा गोयल
नई दिल्ली
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लो चल पड़ी मैं उस राह पर,
जहाँ राह में लाखों शूल मिलेंगे
मगर मैंने जो ठाना है अपने मन में,
उससे मुझे डिगा न सकेंगे।
पर्यावरण बहुत प्रदूषित हो
चुका है,
इसलिए मैंने वृक्षारोपण का प्रण ठाना है
जानती हूँ कि,
राह में लाखों बाधाएं मिलेंगी
मगर मेरा निश्चय डिगा न सकेंगी।
नहीं है तमन्ना, मिले पद्मभूषण,
मानवता के नाते कुछ करना है मुझको
बंजर धरा आज रोती सिसकती,
आसमान के आँसू भी सूख गए हैं।
विकास के नाम पर कितना विनाश किया है,
हजारों पेड़ काट डाले
तालाब पाट डाले,
खनन माफिया ने रेत खनन करके
नदियों का आकार छोटा कर दिया,
देश के रहनुमाओं ने
वर्षा जल को सिंचित करने के लिए,
कोई उपाय नहीं किया
यदि किया तो केवल यह कि
कांक्रीटों के महल खड़े कर दिए।

‘यूज़ एण्ड थ्रो’ के चलन से,
कूड़े के पहाड़ बन गए
कभी थर्मोकोल, कभी प्लास्टिक,
और अब कागज के ग्लास
पार्टी में एक आदमी,
पानी पीने में ही छह ग्लास इस्तेमाल करता है
ऊपर से टिश्यू पेपर का बढ़ता चलन,
ये सभी पेड़ काटकर ही तो बनते हैं।
मानव ने पेड़ तो काटे,
लेकिन नए पेड़ नहीं लगाए
धरती पर इतने विनाश के बाद भी…,
मानव ने कुछ सबक नहीं सीखा।
मुझे ही अपने जैसे कुछ जुनूनी लोगों के साथ मिलकर,
मानव को समझाना होगा
माना कि यह आसान नहीं है,
लेकिन नामुमकिन भी नहीं है।

कर्मवीर के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं,
लो चल पड़ी मैं अपने लक्ष्य की ओर
एक कदम मेरा होगा,
और मेरे पीछे होंगे अंसख्य कदम
मेरा साथ देने के लिए,
पर्यावरण को बचाने के लिए।
वसुन्धरा को हरा-भरा करने के लिए,
मानवीय हितों की रक्षा के लिए॥

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