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पर्यावरण की ओढ़नी

सुशीला रोहिला
सोनीपत(हरियाणा)
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पेड़ों का है कहना,
ना तुम हमें काटना
धूप-छाँव का बिस्तर देते,
राहगीर की पीड़ा हर लेते
फल-फूल का है भंडार,
वर्षा में सहायक होते।

संजीवनी बन देते प्राण,
तादाद बढ़े हमारी
करो यह उपकार,
पेड़ लगाओ सब बच्चे-
बूढ़े और जवान।

गंगा माँ स्वर्ग की देवी,
भगीरथ का तपोबल महान
शिव की जटाओं से निकली,
भू पर लिया विश्राम,
गुणशील,दयावान मिटाती
सबकी प्यास,
जात-धर्म कभी न पूछती
सबका रखे ध्यान।

मानव होकर मानवता भूली,
तुमने दिया मुझे गन्दगी का उपहार
मेरा है कहना-स्वच्छता है मेरा गहना,
माँ बन कर मैं सींचती
मुझे स्वच्छ रखे सब नर-नार,
फिर उतरे कर्ज तुम्हारा।

हिमालय की पुकार,
तीर्थ-धाम का हूँ भंडार
मैं ना मनोरंजन का साधन,
शिव की तपोभूमि का हूँ स्थल
निर्वाण पद का खजाना,
जान ले तू यह मानव
भक्ति-भजन का दरिया बहता,
सदगुरु जी की ले-ले शरणा
ज्ञान-ध्यान जान,
खुल जाता मोक्ष द्वार।

पर्यावरण की ओढ़नी सुखदाई,
सब समझो बहनों-भाई।
आओ इसका संरक्षण करें,
भारतमाता का भाग्य बने॥

परिचय-सुशीला रोहिला का साहित्यिक उपनाम कवियित्री सुशीला रोहिला हैl इनकी जन्म तारीख ३ मार्च १९७० और जन्म स्थान चुलकाना ग्राम हैl वर्तमान में आपका निवास सोनीपत(हरियाणा)में है। यही स्थाई पता भी है। हरियाणा राज्य की श्रीमती रोहिला ने हिन्दी में स्नातकोत्तर सहित प्रभाकर हिन्दी,बी.ए., कम्प्यूटर कोर्स,हिन्दी-अंंग्रेजी टंकण की भी शिक्षा ली हैl कार्यक्षेत्र में आप निजी विद्यालय में अध्यापिका(हिन्दी)हैंl सामाजिक गतिविधि के तहत शिक्षा और समाज सुधार में योगदान करती हैंl आपकी लेखन विधा-कहानी तथा कविता हैl शिक्षा की बोली और स्वच्छता पर आपकी किताब की तैयारी चल रही हैl इधर कई पत्र-पत्रिका में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका हैl विशेष उपलब्धि-अच्छी साहित्यकार तथा शिक्षक की पहचान मिलना है। सुशीला रोहिला की लेखनी का उद्देश्य-शिक्षा, राजनीति, विश्व को आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार मुक्त करना है,साथ ही जनजागरण,नारी सम्मान,भ्रूण हत्या का निवारण,हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाना और भारत को विश्वगुरु बनाने में योगदान प्रदान करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-हिन्दी है l आपकी विशेषज्ञता-हिन्दी लेखन एवं वाचन में हैl

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