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हिंसा का हो खातमा

सुशीला रोहिला
सोनीपत(हरियाणा)
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घायल हुआ है मानव,खतरे में पड़ी मानवता,
नफरत का बीज बो कर मन में है उपजाया
मोह से सींचा उसने,आंतक बन उग आयाl
कागज के चन्द टुकड़ों में बिक गई मानवता,
लाचार हुई है अहिंसा,हिंसक बन कर खायाll

मासूमयित रो पड़ी,कंगन ने शोर मचाया,
लाली कहे पुकार,सूनी ना करो मेरी मांग
बिलख-बिलख माता रोए,लौटा दो मुझे लालl
राखी की है तड़पन,कलाई का मिले मुझे संगम,
हिंसा का हो खातमा,बन जाओ तुम परमात्माll

नियति ने ऐसा चक्र चलाया,एक नया सवेरा आया,
निर्बल पड़ी है हिंसा,दानव बनकर क्या है पाया
दूष्कर्मों का भरा खजाना,आज समझ में आयाl
धुन-धुन पछताया बहुत है,लगी है कर्मों की बाजी,
लाश के ढेर में खुद को अकेला जब मैंने पायाll

हार गए अब हम,क्या खोया-क्या है पाया,
विनती है सबसे मेरी,सदभावना से भर लो झोली।
सबको गले लगाना,सब धर्मों की हो एक माला,
खुदा की इबादत है यही,प्रेमी बन मानवता है फैलानाll

परिचय-सुशीला रोहिला का साहित्यिक उपनाम कवियित्री सुशीला रोहिला हैl इनकी जन्म तारीख ३ मार्च १९७० और जन्म स्थान चुलकाना ग्राम हैl वर्तमान में आपका निवास सोनीपत(हरियाणा)में है। यही स्थाई पता भी है। हरियाणा राज्य की श्रीमती रोहिला ने हिन्दी में स्नातकोत्तर सहित प्रभाकर हिन्दी,बी.ए., कम्प्यूटर कोर्स,हिन्दी-अंंग्रेजी टंकण की भी शिक्षा ली हैl कार्यक्षेत्र में आप निजी विद्यालय में अध्यापिका(हिन्दी)हैंl सामाजिक गतिविधि के तहत शिक्षा और समाज सुधार में योगदान करती हैंl आपकी लेखन विधा-कहानी तथा कविता हैl शिक्षा की बोली और स्वच्छता पर आपकी किताब की तैयारी चल रही हैl इधर कई पत्र-पत्रिका में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका हैl विशेष उपलब्धि-अच्छी साहित्यकार तथा शिक्षक की पहचान मिलना है। सुशीला रोहिला की लेखनी का उद्देश्य-शिक्षा, राजनीति, विश्व को आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार मुक्त करना है,साथ ही जनजागरण,नारी सम्मान,भ्रूण हत्या का निवारण,हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाना और भारत को विश्वगुरु बनाने में योगदान प्रदान करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-हिन्दी है l आपकी विशेषज्ञता-हिन्दी लेखन एवं वाचन में हैl

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