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प्रश्न मरते जा रहे…

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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प्रश्न मरते जा रहे,उत्तर कहाँ है,
अंधकार सा दिखे,आस कहाँ है
तुम भी पूछ रहे हो किन लोगों से-
शीश झुकाए हैं,खामोश जुबाँ है।

सोच विहीन हुए,चेहरे से बयाँ है,
नियति मान बैठे क्या कुछ नया है
प्रश्न से अधिक डर,उत्तर का देखो-
आँखों में बसी गुलामी की हया है।

उत्तर को खोजने,चाँद तक गया है,
सागर जीत लिए यह वो खैवया है
कर्मों में अब विश्वास ही नहीं बचा-
सोचते हैं,सब शनि की ही ढैया है।

क्यूं हो रहा,क्या मानव सो गया है,
जो उत्तर ढूँढता,वही तो खो गया है
इतना असहाय है,प्रश्नों को मारता-
खुद का वज़ूद ही,प्रश्न हो गया है।

प्रश्नों का जनाज़ा ले,चला कहाँ है,
उत्तरों को तू,दफना आया कहाँ है
हत्या हुई है उत्तर की,प्रश्न से पहले-
ये तो मरघट है,भला कोई जहाँ है।

खामोशी-बेबसी अब प्रश्न हुआ है,
उत्तर अब दिलों से ही उतर गया है।
तेरी तो कट गई है,फिर भी ‘देवेश’,
तू छोड़,लोग नए-जमाना नया है॥

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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