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‘प्रेम’ यानि आत्मा से आत्मा का मिलन

सारिका त्रिपाठी
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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संसार में अलग-अलग स्वभाव के अलग-अलग व्यक्ति हैं। सभी में अलग-अलग कुछ विशेष गुण होते हैं,जिसे व्यक्तित्व कहते हैं। कुछ विशेष व्यक्तित्व विशेष व्यक्ति को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। यही आकर्षण जब एक-दूसरे के विचारों में मेल पाता है। एक-दूसरे के लिए त्याग का भाव अनुभव करता है,एक-दूसरे के लिए समर्पित हो जाना चाहता है। एक-दूसरे की प्रसन्नता में प्रसन्नता अनुभव करता है। एक-दूसरे का साथ पाकर सुरक्षित तथा प्रसन्न अनुभव करता है। एक-दूसरे पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देना चाहता है। जब उसका एक-दूसरे से सिर्फ शारीरिक या मानसिक सम्बन्ध न होकर आत्मा से आत्मा का मिलन हो जाता है,शायद वही प्रेम है।
‘प्रेम’,हृदय की वह अनुभूति है जो जन्म के साथ ही ईश्वर से उपहार स्वरूप प्राप्त है। या यूँ कहें कि,माँ के गर्भ में ही प्रेम का भाव पल्लवित एवं पुष्पित हुआ है। प्रेम अस्तित्व है-अवलम्ब है-समर्पण है-निःस्वार्थ भाव से चाहत है,जिसे हम सिर्फ अनुभव कर सकते हैं। प्रेम अपने आपमें ही पूर्ण है,जिसे शब्दों में अभिव्यक्त करना थोड़ा कठिन है। फिर भी हम अल्पबुद्धि लिखने चले हैं प्रेम की परिभाषा।
‘प्र’ और ‘एम’ का युग्म रुप प्रेम कहलाता है, जहां प्र को प्रकारात्मक और एम को पालनकर्ता भी माना जाता है। प्रेम में लेन-देन नहीं होता। प्रेम सिर्फ देकर संतुष्ट होता है। शरीर,मन और आत्मा प्रेम के सतह हैं। प्रेम किसे,किस सतह पर होता है,यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है।
दार्शनिक आत्मा और परमात्मा के प्रेम का वर्णन करते हैं,तो महाकवियों के संवेदनशील मन ने हृदय की सुन्दरता को महसूस कर प्रेम का चित्रण अपने अंदाज में किया है। आम तौर पर हर रिश्ते में अलग-अलग भावनाएं जुड़ी होती हैं उन भावनाओं की अनुभूति भी प्रेम के प्रकार हैं। उम्र के साथ-साथ प्रेम का भाव भी बदलता रहता है। जब व्यक्ति अपने बालपन की दहलीज को लांघ किशोरावस्था के लिए कदम बढ़ाता है,तब उसे शारीरिक और मानसिक स्तर पर कई प्रकार के परिवर्तन का सामना करना पड़ता है। और वह विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होता है। इसी आकर्षण को जब शरीर मन और आत्मा आत्मसात कर लेता है,उसी प्रक्रिया को ही हम प्रेम कह सकते हैं। प्रेम एक-दूसरे को देकर संतुष्ट होता है।
राधा-कृष्ण का प्रेम सच्चे प्रेम का उदाहरण है। आज से पहले हमारे यहाँ प्रेम को खुली छूट नहीं मिली थी। लैला-मजनू,हीर-रांझा के प्रेम को समाज की की मान्यता नहीं मिली, और प्रेम के लिए उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी थी। वहीं आज प्रेमी बहुत ही आसानी से टूट और जुड़ रहे हैं। आज लोग दिल की अपेक्षा दिमाग से काम ले रहे हैं। समाज भी प्रेम को स्वीकार कर रहा है,यही वजह है कि आजकल प्रेम विवाह की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
आज पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण ने प्रेम का अंदाज ही बदल दिया है। आजकल का प्रेम जीवन जीवान्तर तक का न होकर कुछ वर्षों में ही टूट और जुड़ रहा है। प्रेमी-प्रेमिका बड़ी आसानी से एक-दूसरे के प्रेम बन्धन से मुक्त होकर अन्य प्रेमी-प्रेमिका ढूंढ ले रहे हैं, और बड़ी आसानी से अपने अपने पुराने प्रेमी-प्रेमिका को कह देते हैं कि,अब हम सिर्फ दोस्त हैं।
कुछ लोग विवाहेत्तर सम्बन्धों को भी प्रेम की संज्ञा देते हैं-उनके अनुसार प्रेम अंधा होता है वह उचित और अनुचित नहीं देखता-सिर्फ़ प्रेम करता है..अंधा…वह अपने तरह-तरह के कुतर्कों द्वारा अपने प्रेम को सही साबित करने का प्रयास करता है।
विवाहेत्तर सम्बन्धों का दुष्परिणाम कभी-कभी बहुत ही भयावह होता है।
मर्यादित प्रेम यदि जीवन में सुधा की रसधार है तो अमर्यादित प्रेम विष का प्याला और आग का दरिया है। इसलिए,प्रेम में मर्यादा का होना आवश्यक है..!

परिचय-सारिका त्रिपाठी का निवास उत्तर प्रदेश राज्य के नवाबी शहर लखनऊ में है। यही स्थाई निवास है। इनकी शिक्षा रसायन शास्त्र में स्नातक है। जन्मतिथि १९ नवम्बर और जन्म स्थान-धनबाद है। आपका कार्यक्षेत्र- रेडियो जॉकी का है। यह पटकथा लिखती हैं तो रेडियो जॉकी का दायित्व भी निभा रही हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप झुग्गी बस्ती में बच्चों को पढ़ाती हैं। आपके लेखों का प्रकाशन अखबार में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य- हिन्दी भाषा अच्छी लगना और भावनाओं को शब्दों का रूप देना अच्छा लगता है। कलम से सामाजिक बदलाव लाना भी आपकी कोशिश है। भाषा ज्ञान में हिन्दी,अंग्रेजी, बंगला और भोजपुरी है। सारिका जी की रुचि-संगीत एवं रचनाएँ लिखना है।

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