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भूखी दादी

रश्मि लहर
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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मोहल्ले में नवरात्रि पर्व की चहल-पहल थी। कृष्णा की दादी देवी गीत गुनगुना रही थीं। कृष्णा उनके ऑंचल से खेल रही थी कि, उनको फिर उल्टी हो गई। यूॅं तो कृष्णा अभी १२ वर्ष की ही थी, पर काम-काज बड़ों की तरह निपटाती थी। वह माॅं को बताने गईं-
“माँ दादी को आज फिर उल्टी हो गई है…कुछ करो ना!”
“तुम्हारी दादी ना! इतना खाती हैं कि, उल्टी नहीं होगी तो और क्या होगा!”
कहते हुए उसकी माॅं ने उसको झिड़का।
“देख कृष्णा! आज मेरे चाचाजी को आना है, मुझे परेशान मत करो!” माॅं ने थोड़ा चिढ़ कर उससे फिर कहा।
“पर माॅं! उन्होंने परसों रात से कुछ नहीं खाया है!” कृष्णा ने उदास होकर कहा।
माॅं हमेशा की तरह उसकी बात को अनसुना कर तेजी से बाहर निकल गईं। कृष्णा दादी की उल्टी साफ़ करने लगी।
वह अपनी नई माॅं के व्यवहार से बहुत परेशान थी। वे किचन बन्द रखती थीं, चाबी कमर में ठूॅंसे रहती थीं। जाने क्यों पापा भी उससे और दादी से दूर हो चुके थे। अक्सर २-२ दिन तक कृष्णा तथा दादी मन्दिर के प्रसाद पर निर्भर रहती थीं। माॅं करोड़ों की संपत्ति की मालकिन बनी बैठी थीं, पर दादी! वो उदास मन से दादी को देखने लगी।
दादी के होंठ सूखे से थे, वे ऑंखें मूॅंदें लेटी थीं। अचानक कृष्णा को ख़्याल आया कि, माॅं तो बाहर व्यस्त हैं, अगर भोजन की कमी से दादी को कुछ हो गया तो ?
वह मन में दृढ़ निश्चय करके कमरे में गई और फोन घुमाया। कुछ देर बाद इधर वो चाचाजी आए और उधर पुलिस की गाड़ी रुकी। गाड़ी से एक इंस्पेक्टर साहब उतरे और उन्होंने अन्दर आते ही पापा से पूछा-
“माता जी कहाॅं हैं ?”
“जी…आप ? आइए! आइए!”
पापा हकलाते हुए बोले।
“आज मैं बस माता जी के साथ ही नाश्ता करने आया हूॅं। उनका आर्शीवाद लेकर चला जाऊॅंगा!” यह कहते हुए उन्होंने साधिकार दादी के कमरे की तरफ़ देखा।
पापा उनको लेकर दादी के कमरे में पहुॅंचे। वे दादी की हालत देखकर सकपका गए। मृतप्राय काया! उफ! पीछे से इंस्पेक्टर साहब भी आ गए।
“अरे माताजी…आपको क्या हुआ ?” कहते-कहते उन्होंने आग्नेय दृष्टि से कृष्णा के पापा की तरफ देखा और बोले-
“आप यहीं नाश्ता भिजवा दीजिए! दरअसल जब मैं पहली बार लखनऊ पोस्टेड हुआ था, तो आप तो चंडीगढ़ में पोस्टेड थे, माताजी यहीं थी। मैं भी रोज उसी मंदिर में जाता था, जहाॅं माताजी जाती थीं। एक दिन मैंने उन्हें बताया था कि, मैं इस शहर में नया हूॅं। मुझे एक हफ्ते बाद सरकारी आवास मिल जाएगा। बस एक हफ्ते के लिए कोई किराए का घर चाहिए। तब उन्होंने मुझे पूरे एक हफ़्ते के लिए अपने इस घर में रहने के लिए स्थान दिया था। भोजन के साथ- साथ उन्होंने मुझे बेटे की तरह ही स्नेह भी दिया था। जब तक मैं यहाॅं रहा, मुझे माॅं की कमी कभी महसूस नहीं हुई। फिर मेरा तबादला पूना में हो गया था। ५ वर्ष बाद अब मेरी पोस्टिंग दुबारा लखनऊ में हो गई है। मैं परसों ही माता जी से मिलने आया था, पर कृष्णा बिटिया ने बताया था कि, घर में कोई और नहीं है, तो मैं उसको अपना फोन नम्बर देकर चला गया था। इतने वर्षों बाद आज माताजी को इस हालत में देखकर मेरा मन व्यथित हो गया है!” कहते हुए वे रो पड़े।
कृष्णा के पापा ने जल्दी-जल्दी नाश्ते की मेज सजवा दी। कृष्णा ने दादी को सहारा देकर उठाया और अपने हाथों से जलेबी का टुकड़ा अपनी दादी केे मुॅंह में डाल दिया।
पापा चाचाजी को अटेंड करने चले गए और इंस्पेक्टर साहब, कृष्णा तथा दादी नाश्ता करने लगीं।
भूखी दादी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव देखकर कृष्णा को अलौकिक शान्ति की अनुभूति हुई। वो धीरे से इंस्पेक्टर साहब से कहने लगी-“बिना बुलाए भी दादी के हाल-चाल लेने आ जाया करिए अंकल!”

“हाॅं बेटा, अब ज़रूर आया करूॅंगा।” कहते हुए इंस्पेक्टर साहब ने दादी को गले से लगाया तथा कृष्णा को मूक नज़रों से धन्यवाद देते हुए घर से निकल गए!