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भोर

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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उगते हुए आदित्य की लाली को है मेरा नमन,
छिपते हुए सूरज ने नभ को लाल लाल कर दिया।
किरणें आयी भानु की जादू-सा हरसू हो गया,
इस धरा को रोशनी से मालामाल कर दिया।

खिल गये उपवन सभी औ खिल उठा सारा चमन,
फूलों औ कलियों ने गुलशन को पामाल कर दिया।
चहकने पंछी लगे,कोयल ने छेड़ी रागिनी,
भंवरों की गुन-गुन ने उपवन में कमाल कर दिया।

फूल चुनने के लिये गुलशन में आयीं गोरियाँ,
मीठे गीतों ने ही उपवन में धमाल कर दिया।
माली आया बाग का,सुंदर छटा को देखने,
फूल चुनने वालों से उसने सवाल कर दिया।

बाग को यूँ मत उजाड़ो गुस्से से कहने लगा,
गोरियों ने पीट कर बुरा उसका हाल कर दिया।
श्याम के मंदिर में जाकर माल फूलों की बनी,
प्रेम सहित गुलाल ले मूरत को लाल कर दियाll

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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