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महिला स्वतंत्रता की नई पहचान

डॉ.सोना सिंह 
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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लोकप्रिय सिनेमा के मजबूत स्तंभ………..


बधाई हो की अपार सफलता का श्रेय किसी उम्रदराज महिला को दिया जाए,तो वह सिर्फ और सिर्फ नीना गुप्ता हो सकती हैं। अपेक्षाओं,उपेक्षाओं से परे स्वतंत्रता की नई परिभाषा गढ़ने वाली अपनी स्वयं की रचनाकार नीना ने महिला सशक्तिकरण को नए आयाम दिए हैं। भारतीय सिनेमा के आधार स्तंभों में सदा से ही सहकलाकारों की गिनती आदर से की जाती है। उन्हीं में से एक नीना सिनेमा का आधार स्तंभ है। अभिनेत्री की तरह नहीं,पर पूर्णतः
नायिका का श्रेय उन्हें मिला। स्वतंत्रता और स्वछंदता का एक मेल किसी महिला में साधारणतः नहीं मिलता। भारतीयता के परिवेश में पली-बढ़ी इस अदाकारा ने अभिनय के क्षेत्र में अपने लिए एक अलग मुकाम बनाया है। १९५४ की ४ जुलाई को दिल्ली में जन्मी इस अभिनेत्री ने संस्कृत में एम.ए. किया,फिर दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से १९८० में अभिनय का अध्ययन किया। उन्होंने अनेक अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में अभिनय किया। इनमें-महात्मा गांधी,द डिसिवर्स,इन कस्टडी,मिर्जा गालिब और काॅटन मेरी में उनकी भूमिका उल्लेखनीय रहीं। नीना ने हिन्दी फिल्मों में अभूतपूर्व अभिनय किया। जाने भी दो यारों की पकंज कपूर की सचिव और खलनायक में माधुरी दीक्षित के उनके गीत को आज भी हर कोई याद करता है। नीना ने १९९३ में लाजवंती और बाजार सीताराम टेलीफिल्म बनाई,जिसे गैर फीचर फिल्म श्रेणी का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। नीना ने टेलीविजन पर १९८५ में खानदान से शुरूआत की। फिर १९८६ में यात्रा,गुलजार का मिर्जा गालिब धारावाहिक १९८७ में किया। इसके बाद श्याम बेनेगल का भारत एक खोज,दर्द,साँस,गुमराह,सात फेरे सलोनी के श्रीमान श्रीमती,सफर,चिठ्ठी,मेरी बीवी का जवाब नहीं और बुनियाद में उनकी भूमिका आज भी यादगार है। नीना ने स्टार प्लस के कमजोर कड़ी कौन का संचालन भी किया। जस्सी जैसी कोई नहीं,लेडिज स्पेशल,दिल से दिया वचन में नंदिनी जैसे किरदारों को जीवंत किया।
इनकी नाटक निर्माण कम्पनी है सहज प्रोडक्शन्स। इसके तहत इन्होंने राजेन्द्र गुप्ता के साथ मिलकर सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक हिन्दी नाटक बनाया। जी टी.वी. के रिश्ते से भी नीना को काफी लोकप्रियता मिली। लिव इन की अवधारणा को मजबूती से सामाजिक जामा पहनाने वाली वो पहली कलाकार है। वेस्ट इंडीज के क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स के साथ संबंध रखे और उससे दो संतानों को भी जन्म दिया।

परिचय-डॉ.सोना सिंह का बसेरा मध्यप्रदेश के इंदौर में हैl संप्रति से आप देवी अहिल्या विश्वविद्यालय,इन्दौर के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में व्याख्याता के रूप में कार्यरत हैंl यहां की विभागाध्यक्ष डॉ.सिंह की रचनाओं का इंदौर से दिल्ली तक की पत्रिकाओं एवं दैनिक पत्रों में समय-समय पर आलेख,कविता तथा शोध पत्रों के रूप में प्रकाशन हो चुका है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के भारतेन्दु हरिशचंद्र राष्ट्रीय पुरस्कार से आप सम्मानित (पुस्तक-विकास संचार एवं अवधारणाएँ) हैं। आपने यूनीसेफ के लिए पुस्तक `जिंदगी जिंदाबाद` का सम्पादन भी किया है। व्यवहारिक और प्रायोगिक पत्रकारिता की पक्षधर,शोध निदेशक एवं व्यवहार कुशल डॉ.सिंह के ४० से अधिक शोध पत्रों का प्रकाशन,२०० समीक्षा आलेख तथा ५ पुस्तकों का लेखन-प्रकाशन हुआ है। जीवन की अनुभूतियों सहित प्रेम,सौंदर्य को देखना,उन सभी को पाठकों तक पहुंचाना और अपने स्तर पर साहित्य और भाषा की सेवा करना ही आपकी लेखनी का उद्देश्य है।

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