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माँ मिली कंकाल में

सारिका त्रिपाठी
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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मातृ दिवस स्पर्धा विशेष…………


कितनी हलचल होती होगी,
जब अंतस का समुन्द्र उछलता होगाl
किनारों से चोट खाकर,
गंगा बनकर बहती होगीl

आँसू आँखों में आये न होते,
दिल का दर्द यूँ गया न होताl
आँसू की कीमत पूछो उनसे,
जिनके सर माँ के साये न होतेl

देख कर बेटे के कद की ऊंचाई,
पिता की आँखों में आँसू भर आयेl
चहकता देख कर अपने बच्चों को,
माँ भी आँसू रोक नहीं पायीl

माँ ने सोचा इस मौके को खास बनाते हैं,
खास मौके पर गंगा जल तो सब चढ़ाते हैंl
मौका बेहद खास है मेरे जिगर के लिए,
आज इष्ट के चरणों में पूरा सागर चढ़ाते हैंl

बहुत खुश हुई माँ,आँसू छलका दिए,
इष्ट के चरणों में पूरा सागर चढ़ा दियाl
खरा सागर था तो कुछ भी नहीं,
आँखों में भरकर माँ ने मान बढ़ा दियाl

बेटा खूब बढ़ा और बढ़ता गया,
सीढ़ी चढ़ा और चढ़ता गयाl
अर्थ तृष्णा में वह माँ का बेटा,
दूर हुआ और होता गयाl

चला तृष्णा की राह पे,
खोया कामिनी की चाह मेंl
भूला अपनी माँ को वह,
कभी आह में,कभी वाह में!

उलझा रहा खुद के बुने जाल में,
माँ आयी एक दिन ख्याल मेंl
सुध आयी माँ की,तो लौट आया,
पर…माँ मिली उसको कंकाल मेंll

परिचय-सारिका त्रिपाठी का निवास उत्तर प्रदेश राज्य के नवाबी शहर लखनऊ में है। यही स्थाई निवास है। इनकी शिक्षा रसायन शास्त्र में स्नातक है। जन्मतिथि १९ नवम्बर और जन्म स्थान-धनबाद है। आपका कार्यक्षेत्र- रेडियो जॉकी का है। यह पटकथा लिखती हैं तो रेडियो जॉकी का दायित्व भी निभा रही हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप झुग्गी बस्ती में बच्चों को पढ़ाती हैं। आपके लेखों का प्रकाशन अखबार में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य- हिन्दी भाषा अच्छी लगना और भावनाओं को शब्दों का रूप देना अच्छा लगता है। कलम से सामाजिक बदलाव लाना भी आपकी कोशिश है। भाषा ज्ञान में हिन्दी,अंग्रेजी, बंगला और भोजपुरी है। सारिका जी की रुचि-संगीत एवं रचनाएँ लिखना है।

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