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विश्व को मानव के रहने लायक बनाएँ

रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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स्वच्छ जमीन स्वच्छ आसमान…

खगोलीय दृष्टि से देखा जाए तो हमारा विश्व सौर मंडल की गतिविधि एवं आकर्षण से एक-दूसरे के साथ बँधा हुआ है, जिसे भूमंडल कहा जाता है।इस भूमंडल में जमीन एवं आसमान सभी समाहित है, और इसमें मानव जीवन का भी अपना एक महत्व है।स्वच्छता जिसकी आधारशिला है, बिना स्वच्छता हमारी जमीन और आसमान इस भूमंडलीय गतिविधि में रोक ला सकते हैं, जिसके कारण सृष्टि का संहार अवश्यम्भावी हो सकता है।
जमीन की अस्वच्छता का परिणाम हम ‘कोरोना’ के काल में भुगत चुके हैं। इसी जमीन की अस्वच्छता का प्रभाव आसमान पर भी पड़ गया है और आकाश की ओजोन परत में अब क्षिद्र हो गया है, जो भूमंडलीय गतिरोध का एक बड़ा उदाहरण बन सकता है।
भूमंडल पर भी समय-समय पर अनेक उल्कापिंड के टूटने या पृथ्वी से भेजे गए राकेट से या पृथ्वी से भेजे गए रोबोट से अनेक कचरा आकाश में इकट्ठा हो जाता है, जो हमारे भूमंडल पर प्रभाव डालता है। इसलिए धरती एवं आसमान दोनों की स्वच्छता आवश्यक है।
अब प्रश्न उठता है कि, प्रदूषण क्यों है ? पूरा ब्रह्माण्ड एक शरीर की भाँति है और सभी चेतन-अचेतन उसी के अंग हैं। ५ तत्व का समन्वित रूप है हम और संसार, जिसका विशाल रूप ही ईश्वर का विशाल रूप है। इसलिए प्रकृति ही हमारा भगवान है। जिस प्रकार मनुष्य के शरीर के एक अंग पर चोट लगने से भंयकर पीड़ा होती है, उसी प्रकार जब बुद्धिमान और विवेकी मनुष्य प्रदूषण करता है तो ईश्वर को कष्ट होता है। ध्वनि द्वारा आकाश का, वनों को उजाड़ कर पृथ्वी का, युद्ध आदि द्वारा जीवन की विनाश लीला से ईश्वर को कितना क्लेश होता है, यह समझना आवश्यक है।
बड़े-बड़े आविष्कारक अपने नाम के लिए परमाणु बम का निर्माण करते हैं, पर यह सब ना मानवता की भलाई के लिए है, ना ही प्रकृति की स्वच्छता के लिए। किसी भी व्यक्ति के शुद्ध एवं अशुद्ध आचरण से पूरे समाज पर प्रभाव पड़ता है, वैसे ही हमारी अस्वच्छता का प्रभाव भूमंडल पर भी पड़ता है।
जमीन को स्वच्छ रखना तो हमारे वश में है और किस प्रकार स्वच्छ रखा जाए, इस पर अनेक परिचर्चा हो चुकी है। गांधी जी के अनुसार-
“स्वच्छता ही सेवा है, हमारे देश के लिए हमारे जीवन में स्वच्छता की बहुत जरूरत है। गंदगी हमारे आस-पास के वातावरण और जीवन को प्रभावित करती है। हमें व्यक्तिगत व आस-पास की सफाई अवश्य रखनी चाहिए और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए।”
अब आसमान की स्वच्छता के बारे में बात कि, विकास जरूरी है, पर विकास के नाम पर जो गंदगी हम समाज को दे रहे हैं, वह गलत है। प्राचीनकाल में आसमान की शुद्धता के लिए हवन-यज्ञ आदि कराया जाता था। आज भी उसी का बहुतायत से प्रयोग होना चाहिए। हमारी धरती यदि स्वच्छ रहेगी तो आसमान स्वतः ही स्वच्छ हो जाएगा।
स्वच्छता एक अच्छी आदत है, जो हमारे जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती है। स्वच्छता के अन्तर्गत शरीर की सफाई, घर की सफाई, मोहल्ले की सफाई, समाज की सफाई के साथ साथ रासायनिक तत्वों का कमतर प्रयोग एवं मन की सफाई की भी परम आवश्यकता है। इसी के तहत भारत के प्रधानमंत्री द्वारा ‘स्वच्छ भारत अभियान’ चलाया गया। इस अभियान के तहत कई योजनाएँ शामिल की गई, जिसमें ग्रामीण घरों में शौचालय निर्माण प्रमुख है।

स्वच्छता की भावना को हमें अपनी आदत में शामिल करना चाहिए, तभी हम ज़मीन को स्वच्छ कर पाएंगे। यह जमीन, यह आसमान, दोनों हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं। एक शरीर है तो दूसरा हमारा मन है। बिना तन व मन के सामन्जस्य के हम भी एक कचरे के समान हैं। अतः खुद को कचरा न बनाएँ, स्वच्छ तन-मन से विश्व को मानव के रहने लायक बनाएँ। जय हिन्द, जय भारत।

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