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शिव विवाह

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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शिव गौरा परिणय शुभ पावन, फिर आया फाल्गुन मास रे,
महादेव जो ख़ुद परमेश्वर, गिरिजा कैलाशी मन आश रे।

बाघाम्बर परिधान महेश्वर, त्रिलोचन शिव विकराल रे
महाशक्ति हिमजा गौरी मन, प्रेम उदित दशा बदहाल रे।

अंगराग भष्म विकराल गात्र, शिव सम्बन्धी भूत पिशाच रे,
किन्तु पार्वती शिव आराधन, पा भुवनेश्वर वरदान रे।

वृषवाहन बैठे शिवशंकर, कंठहार सर्प अतिभान रे,
भूत-प्रेत बारात साथ में, नंदीश्वर मुख मुस्कान रे।

ब्रह्म विष्णु गन्धर्व देवगण, आ रहे बाराती साथ रे,
दुल्हा राजा स्वागत परिणय, लखि माँ मेना शिवनाथ रे।

गिरिराज हिमालय खड़े विनत, विधि हरि दर्शन अभिलाषी रे,
परमेश्वर शिव जामाता पा,कन्यादान सुख आभासी रे।

नाच गान चहुँ बाजे गाजे, शिवगण चारुतम उत्साह रे,
पार्वती सखी विजया लखि, शिव अखिलेश्वर वर राह रे।

शक्ति स्वरूपा खुद बन दुल्हन, सजी जगदम्बा श्रंगार रे,
रत्नजड़ित परिधान चारुतम, उमा गंगाधर उपहार रे।

अर्धरात्रि मुहूर्त शुभ परिणय, शहनाई मंगल गायन रे,
शुचिस्मिता तन्वी श्यामा शिव, शुभ विवाह अनुपम पावन रे।

जगजननी खुद बन परकीया, अर्धांगिनी प्रिया शिवधाम रे,
तजी गेह माॅं पिता नेह को, शिवा कैलाशी अभिराम रे।

वरमाला गिरिजा कर शोभित, डाली शुभंकर वरमाल रे,
लिया भवानी चरण कमल शिव, आशीष नेह पति मान रे।

अश्रु नैन स्नेहिल ममतांचल, मेना नगेन्द्र मन विह्वल रे,
नैहर प्रीति मुदित मन जीवन, गिरिजा लिपटी शोकाकुल रे।

सुता बिदाई अति विह्वल मन, शैलेन्द्र सुता सुखदायी रे,
मातु भवानी स्वयं पीड़ हिय, स्नेहाश्रु नैन बरसायी रे॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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