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संस्कारवान हो शौक या मनोरंजन

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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चिंतन…

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी के साथ विवेकशील जानवर है, जिसमें अपने काम करने की असीम सम्भावनाएँ हैं। जानवर से तात्पर्य इतना है कि, प्रत्येक जानवर अपने धरम-संस्कार का पालन करता है तथा मनुष्य सब जानवरों के गुणों को अंगीकार कर रहा है और करता था। सामाजिक प्राणी होने के कारण उसे अपने काम, व्यापार एवं सेवा के बाद मनोरंजन करना चाहिए, जिससे उसे नई ऊर्जा भी मिलती है और कुछ क्षण के लिए वह अपनी नियमित जिंदगी से अलग होकर गाफिल हो जाता है। वैसे, मनोरंजन के कई साधन पूर्व में राजा, महाराजा, धनी या गरीब वर्ग भी इस्तेमाल करते थे। इसमें कोई सीमा नहीं होती है। किसको-क्या मनोरंजन पसंद है, यह सबकी अपनी-अपनी मान्यता होती है, और शौक व्यक्तिगत के साथ अपनी मित्रता में भी होता है। हमारे देश में विचित्र किन्तु सत्य राजाओं के शौक और मनोरंजन का इतिहास भरा पड़ा है। कई ऐसे राजा रहे, जिनको दूसरों को कष्ट देने का शौक रहता था। ऐसे ही वर्तमान में कुछ ऐसे तथाकथित साहब हैं, जो दुश्मन को मगरमच्छ वाले कुंड में फिकवा देते हैं और कई संत-महंत अभी-अभी प्रकाश में आए, जिन्होंने मनुष्यता की पराकाष्ठा कर दी यानि मानवता उनसे कोसों दूर है।
शौक या मनोरंजन व्यक्तिगत मानसिकता पर आधारित होता है। इसमें किसी को किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है और न होना चाहिए। कारण ये शौक अर्थ यानि धन पर आधारित होते हैं।
बात यहाँ से उपजी कि, वर्तमान में हमारे शासक, मंत्री, सांसद, विधायक, सचिव, कलेक्टर, उद्योगपति या धनवान, कलाकार आदि अपने शौक बहुत स्तरीय करते हैं। उनका कोई मुकाबला नहीं होता, न कर सकते हैं। उनके अधिकांश कार्यक्रम प्रायोजित होते हैं और उनकी उपस्थिति होना अनिवार्य हो जाता है। फिर वहाँ पर लेग, पेग और एग का चलन सामान्य होता है एवं माना भी जाता है। पहले भोग, भोजन तथा ध्यान एकांत में होते थे, पर अब ये सामूहिक होने लगे हैं। इसमें भी समाज को कोई असुविधा नहीं है। कारण कि, अधिकारी , व्यापारी या अन्य सब मनोरंजन करते हैं और करना भी चाहिए, जिससे जीवन में सरसता का बोध होता है, साथ ही कोई क्या कर रहा है, इससे पूरा समाज भी गाफ़िल रहता है।
आज समाचार में प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारियों के चित्र सहित देखा कि, ‘वाइन एंड डाईन’ और उसमें अधिकांश नशे में और ज़ाम लिए दिख रहे हैं। इसमें हमें कोई बुराई महसूस नहीं हो रही ? और कौन-क्यों आपत्ति ले सकता है ? यह मौलिक अधिकार है, व्यक्तिगत स्वंत्रतता है, पर अब बात समाज में आई कि, सरकार २ अक्टूबर से शराब-बंदी करना चाहती थी, किन्तु प्रशासनिक अधिकारियों की नीयत साफ़ नहीं होने से लागू नहीं हो पाई।
वैसे, व्यक्ति अपने घर में शराब पीता है, मांसाहार करता है, पर जब ये उजागर होती है, तब कैसा लगता है ? समाचार में उनकी छवियाँ देखी, तब लगा मनोरंजन या शौक अर्थवान यानि पैसों का हो गया, मतलब संस्कार-विहीन हो गया। इस समाचार से यह बात, जो पहले छिपी थी, वो उजागर हुई और जो समाज के लिए आदर्श माने जाते थे या हैं, उनका चेहरा सामने आ गया। समाज को इससे विशेष कोई मतलब नहीं है। कारण कि, ये कोई नई चीज़ नहीं है, पर इससे उनके चरित्र की जानकारी उनके परिवार, नाते-रिश्तेदार के साथ समाज को भी मिल गई। जब समाज के मार्गदर्शक का ऐसा चरित्र है, तब उनके चरित्र का प्रभाव समाज को प्रभावित किए बिना नहीं रहेगा। और इसके कारण अन्य को भी इसके प्रति प्रेरणा मिलती है।
शौक दुखी करने वाला न हो और मनोरंजन कुछ हद तक संस्कारवान हो, जो समाज को समाचार-पत्र के माध्यम से प्रकट हो। हमें मालूम है कि, समाज में सब नंगे हैं, पर वह उजागर होता है तो उससे एक विचारणीय-चिंतन होता है।
कहने का अभिप्राय यही है कि, हमारे कृत्य या काम ऐसे हों, जो समाज में अच्छे से लगें। कारण हम दोगले या बहुरूपिया हो चुके हैं। हम गधे के ऊपर शेर का मेक-अप किए समाज को डरा रहे हैं, पर रात में वह मेक-अप धुल कर सामने आ जाता है।
वर्तमान दौर में लेग, पेग, एग और घूस बहुत सामान्य है, पर जैसे हाथी के पाँव में सब पाँव समा जाते हैं, ऐसे ही एक अवगुण से सब अवगुण अपने-आप आ जाते हैं।
शौक करने वाले शान समझते हैं, क्योंकि उनकी नज़रों में नशा छाया रहता है, पर यही जब कोई गरीब करे तो कहा जाता है कि, वे अपनी औकात नहीं देखते हैं और जो इनसे दूर हैं, उसे दकियानूस कहते हैं, पर समाज के लिए यदि हो सके तो कुछ पर्दानशीं बन जाओ।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।