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सरस-सुहावनी हिंदी हूँ मैं

राजेश पड़िहार
प्रतापगढ़(राजस्थान)
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हिंदी  दिवस स्पर्धा विशेष………………..

अभिवादन में वंदन करती,चंद्र बिंदु की बिंदी हूँ मैं,
मुझसे दूर नहीं अब जाना,सरस सुहावनी हिंदी हूँ मैं।

कर मत हाय-हैलो अब भाई,चरण पकड़ना छोड़ नहीं,
कहकर गुडलक अपनों का,अपनों से मुख तू मोड़ नहीं।
कर दी उपयोगी अंग्रेजी,झेल रही नित मंदी हूँ मैं…

शब्द-शब्द के भेद अनेक,सोचोगे जो पाओगे,
मुझसे प्रीत लगाकर देखो,मुझमें ही रम जाओगे।
तार-तार जो तुमने कर दी,देखो वही चिंदी हूँ मैं…

‘आदरणीय’,शुभकामनाओं की,बोली कितनी प्यारी है,
‘सर’ कहकर पल्ला झाड़े,ये शब्दों की लाचारी है।
अपने हाथों से अपनों की,लगी हुई पाबंदी हूँ मैं…

गले लगाओ फिर से मुझको,वाणी में मिठास भरुं,
बोझिल होते कदमों में अब,फिर से नव विश्वास भरुं।
उन्नत पथ पर आ कर देखो,सहज सरल बुलंदी हूँ मैं…

अभिवादन में वंदन करती,चंद्र बिंदु की बिंदी हूँ मैं,
मुझसे दूर नहीं अब जाना,सरस सुहावनी हिंदी हूँ मैं॥

परिचय-राजेश कुमार पड़िहार की जन्म तारीख १२ मार्च १९८४ और जन्म स्थान-कुलथाना है। इनका बसेरा कुलथाना(जिला प्रतापगढ़), राजस्थान में है। कुलथाना वासी श्री पड़िहार ने स्नातक (कला वर्ग) की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में स्वयं का व्यवसाय (केश कर्तनालय)है। लेखन विधा-छंद और ग़ज़ल है। एक काव्य संग्रह में रचना प्रकाशित हुई है। उपलब्धि के तौर पर स्वच्छ भारत अभियान में उल्लेखनीय योगदान हेतु जिला स्तर पर जिलाधीश द्वारा तीन बार पुरस्कृत किए जा चुके हैं। आपको शब्द साधना काव्य अलंकरण मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी के प्रति प्रेम है।

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