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सहिष्णुुता से ही मानवता का अभ्युदय संभव

ललित गर्ग
दिल्ली
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अन्तर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस (१६ नवम्बर) विशेष…

विश्व में सहिष्णुता को बढ़ावा देने और जन-जन में शांति, सहनशीलता एवं संवेदना के लिए जागरूकता फैलाने हेतु हर वर्ष १६ नवंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य संसार में हिंसा की भावना व नकारात्मकता को खत्म कर अहिंसा को बढ़ावा देना है। दुनिया में बढ़ते अत्याचार और अन्याय को रोकने तथा लोगों को सहनशीलता-सहिष्णुता के प्रति जागरूकता की भावना जगाने के लिए इस दिवस की विशेष प्रासंगिकता है। यह दिवस सभी धर्मों और अलग-अलग संस्कृतियों को एक होने की प्रेरणा देता है। इसीलिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपने आसपास सहिष्णुता की भावना फैलाने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। भारत के लिए इसका विशेष महत्व इसलिए भी है कि, महात्मा गांधी की १२५ वीं जयंती के अवसर पर वर्ष १९९५ को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता वर्ष’ घोषित किया गया था।
दरअसल, बदलती जीवन- शैली और सामाजिक माहौल की वजह से लोगों के अंदर सहनशीलता लगातार घटती जा रही है। सामाजिक माहौल ना बिगड़े और लोग एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहें, इसी संकल्प के साथ यह अंतरराष्ट्रीय सहनशीलता दिवस मनाया जाता है।
आज व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई-झगड़ा एवं युद्ध की स्थितियाँ बनना आम हो गया है। रूस-यूक्रेन एवं इजरायल-हमास के बीच लम्बे समय से चल रहा युद्ध विश्व मानव समाज के लिए गंभीर खतरा है। लगातार युद्ध की बढ़ती स्थिति एवं आतंकवाद की तरफ बढ़ता व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं विश्व में बढ़ती असहिष्णुता का ही परिणाम है। किसी भी युग में किसी भी देश में जब-जब सहिष्णुता की दीवार में कोई सुराख करने की कोशिश हुई है, तब-तब आसुरी एवं हिंसक शक्तियों ने सामाजिक एकता को कमजोर किया है और विनाश का तांडव रचा है। सहिष्णुता तभी कायम रह सकती है, जब संवाद कायम रहे। सहिष्णुता इमारत है तो संवाद आधार, लेकिन प्रतिस्पर्धा और उपभोक्तावाद के जाल में फंस चुके इस विश्व में यह संवाद लगातार टूटता जा रहा है।
सहनशीलता का शब्दिक अर्थ है शरीर और मन की अनुकूलता एवं प्रतिकूलता को सहन करना। मानव व्यक्तित्व के विकास और उन्नयन का मुख्य आधार तत्व सहिष्णुता है। स्वयं के विरूद्ध किसी भी आलोचना को स्वीकार नहीं करना मोटे रूप में असहिष्णुता है। बताया जाता है कि, सहिष्णुता मनुष्य को दयालु और सहनशील बनाती है, वहीं असहिष्णुता मनुष्य को दम्भी या अहंकारी बनाती है। अहंकार अंधकार का मार्ग है, जो मनुष्य और समाज का सर्वनाश कर देती है। शेख फरीद पुकार-पुकार कर खुद को समझाते हैं, ‘ओ फरीद, अगर तेरे बैरी तुझ पर मुक्कों का प्रहार करते हैं, तब भी बदले में तुम उन पर हाथ मत उठाना। तुम तो उनसे प्रीति ही करना। उन्हें आशीष देना। उनका भला मांगना और उनके पाँव चूम कर चुपचाप अपने घर चले जाना।’ ईसा मसीह ने अपने अनुयायियों से कहा, ‘हिंसा का प्रतिकार कभी हिंसा से नहीं करना, बल्कि सहिष्णुता से करना और अगर कोई तुम्हारे एक अंग पर प्रहार करे तो दूसरा अंग भी उसके आगे कर देना।
सहनशीलता का जिंदगी में बहुत महत्व है। जिसने जीवन में सहन करना सीख लिया वह जिंदगी की हर जंग जीत सकता है। सहिष्णुता जीवन शक्ति का पर्याय है। विश्व के देशों में सहनशीलता का निरंतर क्षरण हो रहा है। शासक एक-दूसरे के विरुद्ध ऐसे बयान जारी कर रहे हैं, जिससे विश्व में कटुता और असहिष्णुता का बाजार गर्म हो रहा है। बात विश्व की ही नहीं, राष्ट्र एवं समाज की भी है, हर ओर छोटी-छोटी बातों पर उत्तेजना, आक्रोश, हिंसा के परिदृश्य व्याप्त है। विश्व सहिष्णुता दिवस मनाने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि, मानव समुदाय एक-दूसरे का सम्मान करें और उन भावनाओं को पुष्ट करें, जिससे किसी भी स्थिति में सहिष्णुता को हानि नहीं पहुंचे। मनु, बुद्ध, महावीर और नानक, गांधी ने किसी भी उद्देश्य के लिए किसी भी पक्ष द्वारा हिंसक मार्ग के अनुसरण को यह कहकर नकारा कि, सात्विक दृष्टि से जब सब एक ही (परमात्मा) के अंश हैं, आस्था एक ही है तो फिर विद्वेष, प्रतिहिंसा और प्रतियोगिता क्यों ?
जिस समाज के पास वेदवाणी और गुरुवाणी से लेकर गांधी तक अहिंसावादी विचारों की धरोहर हो, वहाँ इतनी असहिष्णुता और इतनी हिंसा क्यों ? एक बहुत झीनी, नाजुक और पतली-सी दीवार है सहिष्णुता, जिसके पीछे हिंसा, घृणा, विरोध और प्रतिरोध जैसे विकार घात लगाए बैठे हैं। पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक या आर्थिक में से कोई भी कारण सहिष्णुता की नाजुक दीवार को गिराने के लिए काफी हो सकता है। दूसरों के प्रति असहिष्णुता वाला व्यक्ति समाज का अहित बाद में और अपना अहित पहले करता है। कारण यह है कि, मन में शांति और आसुरी तत्व दोनों एक साथ रह ही नहीं सकते। हिंसात्मक विचार और विकार मन से शांति को उखाड़ कर ही अपना स्थान बनाते आए हैं। बुद्ध कहते हैं कि, ‘जिस समाज में ऐसी विपरीतगामी विचारधारा का (कु) शासन होता है, वह समाज तरक्की नहीं कर सकता और न ही उसमें सौहार्द कायम रह सकता है।’
जिस समाज में सहिष्णुता है, वहां क्षमा है। जहां क्षमा है वहां सौहार्द है। जहां सौहार्द है, वहां सहयोग और समन्वय है। जहां समन्वय है, वहां शांति है। जहां शांति है, वहां मानव का, समाज का, राष्ट्र और विश्व का विकास एवं कल्याण है। इसी युग में दुनिया के कई शांतिप्रिय राष्ट्रों की मिसाल हमारे सामने है, जिन्होंने मारा-मारी, हिंसा और तना-तनी से दूर रहकर सामाजिक और आर्थिक विकास की कई बुलंदियों को छुआ है और वे लगातार आगे बढ़ रहे हैं।
असहिष्णुता शांति एवं सह-जीवन के लिए ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी घातक है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि चिंता ‘चिता’ समान और क्रोध ‘विनाश’ की पहली सीढ़ी होता है। जल्दी उत्तेजित होने वाले जहां अन्य लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, वहीं, खुद की सेहत से भी खिलवाड़ कर रहे हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, सही शिक्षा के अभाव में नई पीढ़ी में मानसिक सहनशीलता कम हो रही है, वहीं सामाजिक परिवेश के आंकलन के बिना बनाए गए कानून भी आग में घी का काम कर रहे हैं। पढ़ाई व संस्कारों के लिए शालाओं में डांटना-मारना उत्पीड़न कहा जा रहा है। ऐसे में जहां शिक्षकों को अपमान झेलना पड़ता है, वहीं युवाओं के हौंसले बुलंद हैं। इस समस्या से बचने के लिए सिर्फ शरीर ही नहीं, बल्कि दिमाग को भी मजबूत करना पड़ेगा। आधुनिक युग में रिश्तों में दरार उत्पन्न होने और हिंसा में वृद्धि होने के कारकों में सहनशीलता का अभाव ही है।

संत कबीरदास, गुरूनानक, रैदास और आचार्य तुलसी आदि संतों ने समाज में सहिष्णुता का भाव उत्पन्न कर सामाजिक समरसता को जन-जन तक पहुंचाया। इससे समाज में सही अर्थों में सहिष्णुता की भावना बलवती हुई। संत कबीर हिन्दु-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। उन्होंने राम-रहीम को एक माना और कहा-ईश्वर एक है, भले ही उसके नाम अलग-अलग क्यों न हों। आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने भी सहिष्णुता का संदेश घर-घर तक पहुंचाया। उन्होंने अनेक बार सहनशीलता का परिचय देकर भारतवासियों को नई राह दिखाई। सहनशीलता हमारे जीवन का मूल मंत्र है। सहिष्णुता ही लोकतंत्र का प्राण है और यही ‘वसुधैव कुटुम्बकम’, ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ एवं सर्वधर्म सद्भाव का आधार है। इसी से मानवता का अभ्युदय संभव है।