कुल पृष्ठ दर्शन : 366

सावन

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
******************************************************************************
सावन जो आये यहाँ,
लेकर मधुर फुहार।
जी भरकर भीजूँ सखी,
गाऊँ मैं मल्हार॥

अब सावन आता नहीं,
जो भीजूँ पिय संग।
सूखा सावन देख के,
उर में नहीं उमंग॥

सावन के घन आ यहाँ,
जोहूँ तोरी बाट।
बिन भीजे सूखी कलम,
सूखे उर के पाट॥

सावन को देखा नहीं,
सावन बीता जाय।
अरे सखी घन के बिना,
जीवन रीता जाय॥

सावन रूठा है यहां,
पिय हैं उत परदेश।
कौन गीत गाये सखी,
को सुलझाये केश॥

सावन मेरे देश आ ,
ले कजरारा वेश।
नयनों में जल है भरा,
ला पिय का संदेश॥

सावन मेरे नैन में,
पिया गये परदेश।
गगन चिढ़ाता है मुझे,
ले कजरारा वेश॥

कौन गली में ओ सखी,
सावन ढूँढा जाय।
गीतों में मल्हार हो,
ढूंढे कौन उपाय॥

सावन अपनी रागिनी,
छेड़ पिया के देश।
पिया दौड़ आयें यहाँ,
जैसे हो उन्मेष॥

आ रे सावन झूमकर,
मान अरे मनुहार।
पिय के संग भीजूं जरा,
गाऊँ मैं मल्हार॥

चीड़ चिढ़ाता है मुझे,
नहीं कहीं भी छाँव।
आ रे सावन झूमकर,
लागूँ तोरे पाँव॥

सागर सूखा ही रहा,
जोह,जोह कर बाट।
बदरी सावन में भरे,
भीजैं उर के पाट॥

परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है। 

Leave a Reply