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साहसी नारी

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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शादी से पहले ये मौसम सोचो कितना प्यारा था,
प्यार बहुत ही था दोनों में जिसका नहीं किनारा था।

आज सोचने बैठी हूँ तो आँखें ही भर आती हैं,
शादी से पहले की यादें मुझको बहुत सताती है।

बीत गया वो वक्त सुहाना साथ कभी जो बीता था,
प्यार दिलों में भरा हुआ था कभी नहीं जो रीता था।

घर बैठी हूँ आज अकेली जैसे मैं परित्यक्ता हूँ,
भाषण देकर चला गया हो ऐसा कोई वक्ता हूँ।

मगर आज की नारी हूँ मैं और नहीं सह पाऊँगी,
मैं सबला हूँ नहीं हूँ अबला,दुनिया नयी बसाऊँगी।

लाये थे संगिनी बना के,औ’ कलंकिनी बना दिया,
अपने जीवन साथी को तुमने अच्छा सिला दिया।

प्यार को तुमने सौदा समझा और दूसरी ले आये,
कैसे हो निर्लज्ज पति मुझसे तो नहीं निभा पाये।

नारी का अपमान बताओ माँ ने तुम्हें सिखाया है ?
या पैसे के गर्व ने तुमसे ये अनर्थ करवाया है ?

जिसको भी लाये हो,उससे कभी निभा ना पाओगे,
चली जायेगी छोड़ तुम्हें,तब हाथ मले रह जाओगे।

मुझको यूँ कमजोर न समझो,बिना सहारे जी लूँगी,
पीना पड़ा जहर जो मुझको मैं उसको भी पी लूँगी।

पंख लगा कर उड़ा समय जाने कितने युग बीते,
अब तो मैं सक्षम हूँ आँखों के आँसू भी रीते।

साथी एक मिला है मुझको साथ निभाने वाला,
हरदम रक्षा करता मेरी है मेरा रखवाला।

ना तो माँग रही सूनी,ना सूनी मेरी कलाई,
भारत की बेटी हूँ,भारतवासी मेरे भाई॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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