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सूखेगा कब आँख का पानी

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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घन घन घन घनघोर घटाएं,घहर घहर घबराते बादल।
भरी दुपहरी दीख रहा है, सूरज को भी अस्ताचल॥

बिजली कड़की बादल बरसे,जैसे अम्बर टूट गया हो।
सदियों से जो धैर्य रखा था,इंद्रदेव का छूट गया हो॥

ताल तलैया नदिया नाले,सागर में कोहराम मचा है।
अंदर-बाहर तन-मन भीगा,कौन कहाँ कब कौन बचा है॥

कौन बड़ा-क्या छोटा बोलो,कैसा बचपन और जवानी।
अंतस तक भी भीग गया है,और भरा आँखों में पानी॥

गाँव शहर बाजार सड़क क्या,मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे भी।
बच्चे बिलख रहे हैं सारे,उनके और हमारे भी॥

गाय भैंस घोड़ा या बकरी,कुत्ते बिल्ली छूट गए।
जाने क्यूँकर आज विधाता,हमसे ही क्यूँ रूठ गए॥

पानी भरा दुकानों में भी,और घरों में पानी है।
खेत और खलिहानों की भी,ऐसी सत्य कहानी है॥

राजा हो या रंक सभी का,एक सरीखा हाल हुआ है।
पानी कैसा पानी मानो,जैसे जी का काल हुआ है॥

शासन और प्रशासन से थी,हम सब को थोड़ी-सी आशा।
किन्तु निकम्मेपन की सबने,जैसे लिख दी हो परिभाषा॥

अतिवृष्टि हुई है ऐसी जैसी,देखी नहीं कभी न जानी।
ये तो पानी बह जाएगा,सूखेगा कब आँख का पानी॥

परिचय-ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है।आप लगभग सभी विधाओं (गीत, ग़ज़ल, दोहा, चौपाई, छंद आदि) में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।आप वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं ,पर बैंगलोर  में भी  निवास है। आप संस्कार,परम्परा और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश-धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। आपका मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य है,परन्तु लगभग ७० वर्ष पूर्व परिवार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १ जुलाई को १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम.भी वहीं हुई है। आप ४० वर्ष से सतत लिख रहे हैं।काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं आपने लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर आप कई बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं। आप आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं। कर्नाटक राज्य के बैंगलोर निवासी श्री  अग्रवाल की रचनाएं प्रायः पत्र-पत्रिकाओं और काव्य पुस्तकों में  प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जनचेतना है।  

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