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सोच ही सूर-असुुुर

सुशीला रोहिला
सोनीपत(हरियाणा)
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विश्व बाल दिवस स्पर्धा विशेष………..


जिन्दगी कर्मों का बंधन है,
मानव आता-जाता यहीं है
जिसकी गोदी में पलता है,
उससे भाषा का ज्ञान मिला है
ईश्वर की है निर्मल यह रचना,
ना प्रकृति ने किया फर्क है
जहाँ बसेरा हुआ है तेरा,
उसी का तू वासी हैl
जिन्दगी कर्मों का बंधन है…

हे मानव क्यों इतराता इतना,
अपनी सोच में किया फर्क है
ऊँच-नीच में बंट गया है तू,
टुकड़ों में बाँटा धर्म
पढ़-लिख हुआ विद्वान,
नभ-धरा का भरपूर ज्ञान है
पद-प्रतिष्ठा में बनी पहचान है,
शीश पर तेरे क्यों चढ़ा अभिमान हैl
जिन्दगी कर्मों का बंधन है…

खौफ का मचाया ताण्डव है,
सोच ने ही बनाया तुझे शैतान है
आंतक का बनाया आकार है,
सोच ही तेरी शैतान है
मन का आत्मा से हो मिलन,
खुद ही में खुदा का वास है
परिवर्तन का होगा सवेरा,
देखना हो अगर दिन सुनहरा
मानवता की यही पुकार है,
असुर-सूर बने तो महान हैl
जिन्दगी कर्मों का बंधन है…ll
(इक दृष्टि यहाँ भी:सूर=देवता,असुर=राक्षस) 

परिचय-सुशीला रोहिला का साहित्यिक उपनाम कवियित्री सुशीला रोहिला हैl इनकी जन्म तारीख ३ मार्च १९७० और जन्म स्थान चुलकाना ग्राम हैl वर्तमान में आपका निवास सोनीपत(हरियाणा)में है। यही स्थाई पता भी है। हरियाणा राज्य की श्रीमती रोहिला ने हिन्दी में स्नातकोत्तर सहित प्रभाकर हिन्दी,बी.ए., कम्प्यूटर कोर्स,हिन्दी-अंंग्रेजी टंकण की भी शिक्षा ली हैl कार्यक्षेत्र में आप निजी विद्यालय में अध्यापिका(हिन्दी)हैंl सामाजिक गतिविधि के तहत शिक्षा और समाज सुधार में योगदान करती हैंl आपकी लेखन विधा-कहानी तथा कविता हैl शिक्षा की बोली और स्वच्छता पर आपकी किताब की तैयारी चल रही हैl इधर कई पत्र-पत्रिका में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका हैl विशेष उपलब्धि-अच्छी साहित्यकार तथा शिक्षक की पहचान मिलना है। सुशीला रोहिला की लेखनी का उद्देश्य-शिक्षा, राजनीति, विश्व को आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार मुक्त करना है,साथ ही जनजागरण,नारी सम्मान,भ्रूण हत्या का निवारण,हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाना और भारत को विश्वगुरु बनाने में योगदान प्रदान करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-हिन्दी है l आपकी विशेषज्ञता-हिन्दी लेखन एवं वाचन में हैl

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