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स्नेह की राह देखता रक्षा-बंधन

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ 
मनावर(मध्यप्रदेश)
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स्नेह के धागे…

वर्तमान में महिलाओं के साथ अभद्रता पूर्ण व्यवहार ने रक्षासूत्र के मायने को बिखेरा है, जो बेहद शर्मनाक है। रक्षा-बंधन किसलिए मनाते हैं ? रक्षासूत्र एक विश्वास का धागा, जो दूर रहकर हर साल राह देखता रक्षाबंधन की। दूर बसे, विदेशों में बसे और सीमाओं पर डटे भाइयों की सूनी कलाइयों में बंधने की राह देखते धागे स्नेह और विश्वास के संग चिट्ठियों में बैठ कर आते। बहना की तस्वीर झलक जाती औऱ आशीर्वाद के फूल आँसू के रूप में गिरने लग जाते। भाई- बहनों का त्यौहार रक्षा-बंधन रक्षा कवच के रूप में बंधे धागे से बिना बोले चिठ्ठियों से, संदेशों से दु:ख-सुख बता कर जाता है। बहनें भी अपने भाइयों से सहायता की अपेक्षा रखती हैं। रक्षा-बंधन में रिश्ते की अहमियत ता-उम्र तक बरकरार रहती है। जिनकी बहनें और भाई नहीं होते, वे भी ऊपर वाले की कृपा से रक्षा-बंधन पर्व पर बनाए गए रिश्ते को जिंदगीभर निभाकर अपनी बहन की रक्षा का कर्तव्य निभाते आ रहे हैं। हमें भारतीय संस्कृति की परम्परा पर गर्व है। समयानुकूल दूर जाकर बस जाने व किसी कारणवश ना जा पाने की वजह से दु:ख तो अवश्य होता है, किन्तु रक्षाबंधन की शुभकामनाएं बहन-भाई के लिए चिठ्ठियों और मोबाइल संदेशों के बीच रक्षाबंधन पर्व पर बचपन से अब तक के सफर की छोटी-छोटी घटनाओं को एक एलबम के रूप में दर्शन करवा कर दूरियों को परे रख यादों को ताजा कर जाती है। बहन- भाई की छोटी-छोटी नाराज़गी को रक्षाबंधन के स्नेह का भेजा या बांधे जाने वाला धागा ‘राखी’ क्षणभर में छू मंतर कर सुकून का वातावरण निर्मित कर देता है। आज भी मेरी आँखों में बचपन की यादों के आँसू डबडबाने लग जाते हैं। ख़ुशी के त्यौहार पर रंग- बिरंगी राखी अपने हाथों में बंधवाकर, माथे पर तिलक लगवाकर, एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर बहन की सहायता करने का संकल्प लेते हैं तो लगने लगता है कि पावन त्यौहार रक्षा बंधन और भी निखर गया है एवं मन बचपन की यादों को भी फिर से संजोने लग गया है।

परिचय-संजय वर्मा का साहित्यिक नाम ‘दॄष्टि’ है। २ मई १९६२ को उज्जैन में जन्में श्री वर्मा का स्थाई बसेरा मनावर जिला-धार (म.प्र.)है। भाषा ज्ञान हिंदी और अंग्रेजी का रखते हैं। आपकी शिक्षा हायर सेकंडरी और आयटीआय है। कार्यक्षेत्र-नौकरी( मानचित्रकार के पद पर सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि के तहत समाज की गतिविधियों में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,दोहा,हायकु,लघुकथा कहानी,उपन्यास, पिरामिड, कविता, अतुकांत,लेख,पत्र लेखन आदि है। काव्य संग्रह-दरवाजे पर दस्तक,साँझा उपन्यास-खट्टे-मीठे रिश्ते(कनाडा),साझा कहानी संग्रह-सुनो,तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो और लगभग २०० साँझा काव्य संग्रह में आपकी रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर ३८ साल से रचनाएँ छप रहीं हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में देश-प्रदेश-विदेश (कनाडा)की विभिन्न संस्थाओं से करीब ५० सम्मान मिले हैं। ब्लॉग पर भी लिखने वाले संजय वर्मा की विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-मातृभाषा हिन्दी के संग साहित्य को बढ़ावा देना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,तो प्रेरणा पुंज-कबीर दास हैंL विशेषज्ञता-पत्र लेखन में हैL देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-देश में बेरोजगारी की समस्या दूर हो,महंगाई भी कम हो,महिलाओं पर बलात्कार,उत्पीड़न ,शोषण आदि पर अंकुश लगे और महिलाओं का सम्मान होL