ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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पिता सजा कर मोती-सोना,
आँचल भर उपहार दिया।
बैठाया बेदी सप्तपदी,
बांधा मंगल हार पिया॥
त्याग मात पिता का गृह,
राम समझ कर बनी सिया…।
पति निकला रावण जैसा,
और लँका ससुराल हुआ…॥
निर्धन बाबुल शिक्षा से,
मालामाल किया बिटिया…।
यह धन क्यों रास न आया,
जान लिया ससुराल जिया॥
शुरू दहेज खेला हुआ,
रखे चाह पैसा रुपिया…।
सोच विचार स्वयं मति से,
समझ-बूझ का रख नजरिया…॥
अरमानों का घोंट गला,
समझौता कर प्यार दिया…।
गुण-ज्ञान का कोई मोल नहीं,
घुट-घुट जी रही बिटिया…॥
बेटी साथ दहेज धन देकर,
अपराधी बन पिता जिया…।
रस्म-रिवाज के नाम से,
कुछ न कुछ देता ही गया…॥
लालच मुँह सुरसा जैसा
बढ़ रहा लोभ नया-नया…।
मंगलसूत्र बना फाँसी,
फंदे लटकी मिली ‘टिया॥’
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।