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अधिकारी `स्वामी` ना होकर मात्र `सेवक`

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’
ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर)

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गणतंत्र दिवस हमारा सबसे बड़ा राष्ट्रीय त्यौहार है,जिसके लिए हमारे वीर क्रांतिकारी बलिदानियों ने सर्वस्व त्याग कर दिया था और अपने प्रधान,अपने निशान एवं अपने संविधान हेतु प्राणों की आहूतियां दी थीं। फलस्वरूप भारतीय नागरिकों को स्वामी के रूप में मतदान का अधिकार मिला,जिसके प्रयोग से हमारे अपने प्रधानमंत्री एवं महामहिम राष्ट्रपति सहित संसद,न्यायपालिका बनीं,जो संविधान के अनुसार राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों की आन-बान और शान की रक्षा-सुरक्षा करने लगे।चूंकि,हमारी सरकार की विशेषता है कि वह लोगों की है और लोगों द्वारा लोगों के लिए ही वचनबद्ध है। चूंकि,सरकार ने संविधान की शपथ ग्रहण की हुई होती है,मगर देखा जा रहा है कि स्वतंत्रता के ७१वें गणतंत्र दिवस पर भी देश के विभिन्न स्थलों पर आगजनी,हिंसा,आतंक और उत्पात हुआ है,जिसके कारण चारों ओर निराशा फैली हुई है। पुलिस एवं सुरक्षा बलों पर जानलेवा हमला किया जा रहा है। सरकारी सम्पत्ति तोड़ी एवं जलाई जा रही है।
ऐसा क्यों हो रहा है ? कौन ऐसा करवा रहे हैं ? जिस पर बुद्धिजीवियों,पत्रकारों,चिंतकों,आलोचकों, कलाकारों,लेखकों,विचारकों,शोधकर्ताओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं में संयुक्त रूप से चर्चा होनी अति आवश्यक हैl लोकतंत्र द्वारा लोकतांत्रिक प्रक्रिया से सदभावना से प्रश्न पूछे जाएं कि,हम अपनी ही पुलिस पर पत्थर क्यों मार रहे हैं ? अपने ही राष्ट्र की सम्पत्ति क्यों जला रहे हैं ?,जबकि पुलिस हमारी रक्षक है और राष्ट्र हमारा मान,सम्मान व गौरव है।
वर्णननीय है कि,क्षमा,दान व सत्कार युगों-युगों से भारतीय संस्कृति रही है,फिर पुलिस को पत्थर क्यों ? रेल व बसों को आग क्यों ? ऐम्बुलेंस का रास्ता क्यों रोका जा रहा है ?,जबकि विरोध एवं निराशा को प्रकट करने के कई अन्य साधन हैं। जैसे-मौन धारण कर, अर्ध नग्न होकर,लेट कर एवं पदयात्रा इत्यादि से प्रदर्शन कर सहयोग या रोष प्रकट कर अपने कष्टों का समाधान किया जा सकता है। वैसे भी हमारी स्वतंत्रता बच्ची ना होकर ७१वर्षीय हो चुकी है,तथा हमारी संस्कृति में त्याग व तपस्या को अत्यंत महत्व दिया गया है। इसी त्याग की कड़ी के अंतर्गत हमारे देश ने शत्रु देश के ९० हजार युद्ध सैनिक बंदियों को क्षमा कर उनको उनके देश वापिस भेजकर मानवता का संदेश दिया था। ऐसा करने से भारत का कद विश्व में बढ़ा था। अब ऐसा क्या हो गया है कि सरकार पीड़ित-प्रताड़ित शरणार्थियों को नागरिकता देने जैसी मानवीय कार्यों को अग्रसर कर रही है,तो विपक्ष द्वारा विरोध कैसा ? विपक्ष को समझना चाहिए कि यदि वह किसी पीड़ित-प्रताड़ित की पीड़ा बांट नहीं सकता तो कम से कम उनके घाव को कुरेदें तो नहीं। इस पर राजनीति और धर्म के कारण पाकिस्तान,बंगलादेश व अफगानिस्तान द्वारा ठुकराए शरणार्थी कहां जाएंगे ? कौन अपनाएगा उन्हें ? उन्हें गले लगाना मानो समुंदर से एक घूंट पानी पिलाना मात्र है। फिर इसमें संकोच क्यों ? विपक्ष अमानवीय भूमिका क्यों निभा रहा है ? क्या पीड़ितों को राहत या न्याय देने में पुलिस व प्रशासन पर पत्थर मारना शोभनीय है।
इसी प्रकार राष्ट्रहित में राष्ट्र की शान्ति विकास व समृद्धि हेतु,वीर क्रांतिकारी बलिदानियों की आत्मा को शाँति दिलाने,उनके संजोए राष्ट्रीय सपनों को साकार करने के लिए पुलिस व प्रशासन को भी संयम रखना चाहिए,क्योंकि गणतंत्र में वरिष्ठ से वरिष्ठ भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी एवं भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी राष्ट्र के नागरिकों के स्वामी ना होकर मात्र सेवक हैं।

परिचय-इंदु भूषण बाली का साहित्यिक उपनाम `परवाज़ मनावरी`हैl इनकी जन्म तारीख २० सितम्बर १९६२ एवं जन्म स्थान-मनावर(वर्तमान पाकिस्तान में)हैl वर्तमान और स्थाई निवास तहसील ज्यौड़ियां,जिला-जम्मू(जम्मू कश्मीर)हैl राज्य जम्मू-कश्मीर के श्री बाली की शिक्षा-पी.यू.सी. और शिरोमणि हैl कार्यक्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों से लड़ना व आलोचना है,हालाँकि एसएसबी विभाग से सेवानिवृत्त हैंl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप पत्रकार,समाजसेवक, लेखक एवं भारत के राष्ट्रपति पद के पूर्व प्रत्याशी रहे हैंl आपकी लेखन विधा-लघुकथा,ग़ज़ल,लेख,व्यंग्य और आलोचना इत्यादि हैl प्रकाशन में आपके खाते में ७ पुस्तकें(व्हेयर इज कांस्टिट्यूशन ? लॉ एन्ड जस्टिस ?(अंग्रेजी),कड़वे सच,मुझे न्याय दो(हिंदी) तथा डोगरी में फिट्’टे मुँह तुंदा आदि)हैंl कई अख़बारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैंl लेखन के लिए कुछ सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैंl अपने जीवन में विशेष उपलब्धि-अनंत मानने वाले परवाज़ मनावरी की लेखनी का उद्देश्य-भ्रष्टाचार से मुक्ति हैl प्रेरणा पुंज-राष्ट्रभक्ति है तो विशेषज्ञता-संविधानिक संघर्ष एवं राष्ट्रप्रेम में जीवन समर्पित है।

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