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अंजुरी भर

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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भावनाओं ने कहा तो अंजुरी भर गीत ले कर आ रहे हम।
विघ्न भी हैं सघन राह में निशिचर खड़े आघात को तम।

संगठित निशिचर हुए और भद्रजन में द्वेष है,
बुद्धि का अभिमान अतिशय नेह न अब शेष है।
भावनाएँ शून्य हैं अब वो स्वयंभू बन गये खुद,
बुद्धि का वो आचमन हैं दे रहे अतिशेष है।
दैव होने का है किंचित भाव उनको हो रहा भ्रमll

इन्द्र सम है आचरण पग हैं भ्रमित पावन बने ग़ुलनाग से,
मेनकाएँ और रम्भा की शरण में प्रेमरस हैं पी रहे अनुराग से।
मिल चुका आशीष सत्ता की शरण में गोद बैठे दिख रहे,
लिख रहे नूतन कथानक स्वर्ग सुख ज्यों खेलते वो फाग से।
चल रहा अनुकूल मौसम जा चुका अब जो रहा कल तक विषमll

आज प्रतिभा है उपेक्षित गढ़ रहे नूतन नवल प्रतिमान हैं,
नीतिगत मत पूछिए जो वो कहें तो मानिए इंसान हैं।
टक-टकी हम हैं लगाए आस जागी अंजुली भर आचमन की,
दैव समझा मतिभ्रमित खुद को नहीं वो मानते इंसान हैं।
कालजय की राह में वो जा रहे मुझको गिराकर है वहमll

परिचय–प्रदीपमणि तिवारी का लेखन में उपनाम `ध्रुव भोपाली` हैl आपका कर्मस्थल और निवास भोपाल (मध्यप्रदेश)हैl आजीविका के लिए आप भोपाल स्थित मंत्रालय में सहायक के रुप में कार्यरत हैंl लेखन में सब रस के कवि-शायर-लेखक होकर हास्य व व्यंग्य पर कलम अधिक चलाते हैंl इनकी ४ पुस्तक प्रकाशित हो चुकी हैंl गत वर्षों में आपने अनेक अंतर्राज्यीय साहित्यिक यात्राएँ की हैं। म.प्र.व अन्य राज्य की संस्थाओं द्वारा आपको अनेक मानद सम्मान दिए जा चुके हैं। बाल साहित्यकार एवं साहित्य के क्षेत्र में चर्चित तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन केन्द्र भोपाल से अनुबंधित कलाकार श्री तिवारी गत १२ वर्ष से एक साहित्यिक संस्था का संचालन कर रहे हैं। आप पत्र-पत्रिका के संपादन में रत होकर प्रखर मंच संचालक भी हैं।

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