निराला सिंगापुर

हेमराज ठाकुरमंडी (हिमाचल प्रदेश)***************************************** सागर से सटा यह देश निराला, अनूठी यहाँ की व्यवस्था हैऊँची-ऊँची अटलियाँ हैं यहाँ की, फर्शित हर एक रस्ता है। ७३४.३ वर्ग किमी है दायरा इसका,…

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भोर हुई

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)******************************************* धीरे-धीरे रजनी चली गई,भोर हुई, तब ऊषा आई। मुर्गा बोलता है कुकड़ू कूं,रवि रश्मियाँ दिखने लगीं। कौआ बोलता काँव-काँव,पनिहारिन दिखे ठाँव-ठाँव। हो गई है…

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सपना मेरा

डॉ. गायत्री शर्मा’प्रीत’इन्दौर (मध्यप्रदेश )******************************************* अक्सर देखा करती थी,क्या वह सपना मेरा सच होगा ?आखिर वह पल कब आएगा, प्रेममयी यह जग होगा। स्नेह की एक डोरी से बँधकर,आगे बढ़ते…

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प्रभु राम…

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ प्रभु राम का अवतरण,हमारी आस्था व विश्वास का पक्षधर हैवह राम ही तो है जो कण- कण में है,वह राम ही तो है जो हमारे…

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सच्चा धन

सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)************************************** सच्चे धन हैं सात हमारे,रखना इसका ध्यानकीमत इसकी समझ लीतो सदा बढ़े सम्मान। पहला मंत्र है दर्पण जैसा,'मन' अपना हो साफनहीं किसी की करो बुराईगलती कर दो…

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अनुरोध

रश्मि लहरलखनऊ (उत्तर प्रदेश)************************************************** कभी अकस्मात्,निष्प्राण हो जाएगीमेरी देह!एक दीर्घ नि:श्वास लेकर,स्थान बदल लेंगे सपनेबस दिखावा करतेमिलेंगे,कुछ विषैले 'अपने!' उन तथाकथित अपनों के संग,न करना मुझे निर्वस्त्रन छूने देना उन्हें,मेरा…

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प्रकृति का सौन्दर्य मनभावन

कमलेश वर्मा ‘कोमल’अलवर (राजस्थान)************************************* प्रकृति का सौंदर्य कितना पावन,कितना मनभावनचहुं दिशा में ऊंचे-ऊंचे पर्वत, घनघोर घटाएं उसके ऊपर। हरित वर्ण छाया पर्वत पर, घटाएं आई उमड़-घुमड़ करजब चली पवन मतवाली,…

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बे-इंसानियत

हेमराज ठाकुरमंडी (हिमाचल प्रदेश)***************************************** इंसानों की इन बस्तियों में,है बे इंसानियत कैसे आ गई ?इंसानियत खो गई आसमां में, या धरती उसे है खा गई ? कुछ तो होगा जवाब…

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वक्त की टहनी पर बैठे हैं

डॉ. श्राबनी चक्रवर्तीबिलासपुर (छतीसगढ़)************************************************* हर वक्त धन की पिपासा में लीन,क्या सच में उपयोग कर पाएगालालच, लोभ की मृगतृष्णा में फंस कर,क्या जीवन व्यर्थ गंवाएगा ? खुद को स्थापित करके,कुछ…

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माँ… तेरा साथ

ज्योति नरेन्द्र शास्त्रीअलवर (राजस्थान)************************************************* बिना मांगे भी चुपके से,एक और रोटी मेरी थाली में सरका देती हैवो मेरी माँ है जनाब,अपने हिस्से का खाना मुझे खिला देती है। पढ़ी-लिखी नहीं…

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