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चिड़िया के बच्चे

मौसमी चंद्रा
पटना(बिहार)

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उफ्फ! फ़िर तिनके…परेशान कर रखा है इन चिड़ियों ने…। उमा एक हाथ में झाडू उठाये बड़बड़ाये जा रही थी। मैंने कमरे से ही आवाज लगायी-“क्या हो गया उमा ? क्यूँ गुस्सा कर रही हो इन बिचारी चिड़ियों पर..!”
“क्या करूं दीदी,२ बार झाडू लगा चुकी हूँ। पूरे घर में इन शैतानों ने तिनके फैला रखे हैं।”
मैंने कहा फैलाने दे रे….कुछ दिन की बात है। जल्दी ही बच्चे बड़े हो जाएंगे, फ़िर अपने रास्ते उड़ जाएगे। रह जाएगी अकेली चिड़िया। अभी लगी है बेचारी अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में,करने दे उसे,मत गुस्सा कर।” पता नहीं,क्या हुआ बोलते-बोलते कि मेरे कोर गीले हो गये। मैं आकर कमरे में बैठ गयी। मन पलटने लगा पुराने पन्ने…।
बात तब की है,जब शादी हुई थी विभास से,२ कमरों का छोटा-सा घर।एक में हम दोनों,दूसरे में सास और देवर। अभाव वाले दिन थे,पर विभास के प्यार ने कभी कोई कमी महसूस ही नहीं होने दी। सन्तोष था,सुख था और क्या चाहिये। कुछ सालों मे २ प्यारे बच्चे भी आँचल में आ गये-पुलकित और पलास। ईश्वर से जितना मांगा, उससे ज्यादा मिल गया।
मैं अपने घर-अपनी दुनिया में खुश थी।विभास की नौकरी में पदोन्नति हो गई।बाहर ज्यादा रहने लगा। मैंने भी बच्चों में अपनी खुशी ढूंढ ली। विभास भी बहुत वयस्त रहने लगे। उनका आना कम ही होता था। मुझसे हमेशा कहते,-“अब मन नहीं करता काम करने का। तुमसे और बच्चों से दूर रहना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।”
मैं समझाती,हिम्मत देती। कोशिश करती कि घर की परेशानी उन्हें कम ही बताऊँ। बच्चों की माँ और पापा दोनों बन गयी थी। बिल्कुल मुक्त कर दिया था विभास को घर की जिम्मेदारियों से,ताकि वे अपने काम पर ज्यादा ध्यान दे सकें,पर समय को मेरी परीक्षा लेनी थी। धीरे-धीरे महसूस होने लगा कि,जब भी विभास घर पर होते,उनका मन कहीं और होता। उनके आलिंगन में वो गर्माहट नहीं होती,जो पहले होती थी। मेरा मन अज्ञात भय से डरने लगा था। कई बार मैंने उन्हें देर रात किसी से फ़ोन पर बातें करते हुए देखा। पूछने पर पता चला,ऑफ़िस के किसी काम से फ़ोन आया था। एक रात वे किसी से बात करते हुए तेजी से कमरे में आये और ‘बाय’ बोलकर फोन रखते हुए बाथरूम में चले गये। उनके जाते ही फ़ोन पर संदेश आया। उत्सुकतावश मैंने फ़ोन हाथ में ले लिया। “गुड नाईट कहना तो भूल ही गयी जान”,पढ़ कर मेरा दिमाग सुन्न हो गया,ये क्या हो रहा है…? कांपते हाथों से मैंने फ़ोन रख दिया। उस रात नींद नहीं आयी। पतिदेव चैन से सोये थे,तो पहली बार इनका फ़ोन उठाया, क्योंकि सच जानना जरुरी था। संदेश पे संदेश इनकी धोखेबाजी को बयाँ कर रहे थे। बात बहुत आगे जा चुकी थी। पति के दिल में मेरी जगह कोई और आ कर मजबूती से घर बना चुकी थी। मैंने इन्हें झंझोड़ दिया,-“क्या है ये,यही सिला दिया आपने मेरी वफादारी, कर्तव्यनिष्ठा का।मुझे जवाब दो…!”
ये जान गये थे कि अब कोई भी झूठ चलने वाला नहीं। इसलिए,इन्होंने उस रात जो जवाब मुझे दिया,उसके निशान जाने में १५ दिन लग गये। मुझे परिस्थिति से समझौता करने या बच्चों को छोड़ कर घर से निकल जाने को कहा गया। फैसला लेने में कई दिन बीत गये। मेरे साथ ना तो मेरा मजबूत मायका था,ना ससुराल। मैंने छोटी-सी नौकरी ढूँढ ली,पर उससे मेरे बच्चों का भविष्य नहीं बनने वाला था। अन्ततः,मैंने बच्चों के लिए हालातों से समझौता कर लिया। हाँ,उस दिन से उस घर में कोई पत्नी नहीं रही,सिर्फ एक माँ रहने लगी।
मेरी तपस्या रंग लायी। मेरे बच्चों ने एक-एक करके अपना भविष्य (करियर) बना लिया। आज मुझे विभास को छोड़े पूरे ८ साल हो गये। हाँ,इस चिड़िया के बच्चे भी बड़े हो चुके थे,पर वे अकेले नहीं उड़े,उनकी माँ उनके साथ थी।

परिचय-मौसमी चंद्रा का जन्म ४ जनवरी १९७९ को गया(बिहार)में हुआ हैl आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा पटना(बिहार) के जगनपुरा मार्ग पर हैl आपको हिंदी-अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान हैl बिहार राज्य की निवासी मौसमी चंद्रा ने स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है,तथा कार्यक्षेत्र में अध्यापक हैंl आपने सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत १५ साल भागलपुर शहर में बिता कर एक सामाजिक संस्था से जुड़े रह कर सेवा के कई कार्य (मुफ्त चिकित्सा शिविर,वृद्धाश्रम कार्य, सांस्कृतिक इत्यादि)किएl इनकी लेखन विधा-कहानी और कविता हैl प्रकाशन के अन्तर्गत विभिन्न समाचार-पत्र और पत्रिका में रचनाओं को स्थान मिला है। इनकी दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा और अमृता प्रीतम हैं। माँ और पति को प्रेरणापुंज मानने वाली मौसमी चंद्रा की विशेषज्ञता-नारी की दशा के लेखन में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे खून में है, सीधे अन्तरात्मा को स्पर्श करती हैl” विशेष उपलब्धि के लिए प्रतीक्षारत श्रीमती चंद्रा की लेखनी का उद्देश्य-“मन के अंदर की उथल-पुथल को शब्दों में ढालना है। वेवजह कुछ भी नहीं लिखना चाहती,ऐसा लिखना चाहती हूँ जो पाठक के मानस पटल से आसानी से न मिटे।”

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