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सभ्यता है मातृभाषा

डॉ.अर्चना मिश्रा शुक्ला
कानपुर (उत्तरप्रदेश)
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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस स्पर्धा विशेष….

माँ भारती के भाव को जिसने उड़ेला,
वह भाव है भाषा नहीं उद्‌घोष है वह।
वह मूल्य है आदर्श है संस्कृति हमारी,
है हमारी सभ्यता की जड़ वही।
समृद्ध उसने ही किया हर हृदय छू कर,
हर भाव की अभिव्यक्ति है यह मातृभाषा।
सोंचना हम सोंचते हैं यह हुआ क्या ??
मातृभूमि में वह अपने ही जनों से।
हो रही नीलाम अब हम क्या करें,
दासता में जी रही अपनी धरा में।
हम हुए आजाद अपने देश में,
देश में ही गुलाम है यह मातृभाषा।
सोंचनीय विषय बना है देश में ??
संकल्प नहीं दिवस-न ही नारे भी काम न आएंगें।
यह मान है-सम्मान है और ज्ञान का भण्डार है,
हर कार्य और व्यवहार में होगी सदा।
इस मातृभाषा का तभी उद्धार है,
जय हिंद,हिंदी-हिन्दुस्तान आधार है॥

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