कुल पृष्ठ दर्शन : 263

You are currently viewing वटवृक्ष

वटवृक्ष

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
*************************************************************************
नदी किनारे एक महात्मा रहते थे। एक दिन सुबह-सवेरे जब वे कुटिया से बाहर निकले,तो उन्होंने देखा एक छोटा-सा पौधा लहलहा रहा है। उन्होंनेे उस पौधे के चारों तरफ कंटीली झाड़ियों की बाड़ लगा दी,ताकि कोई जानवर उसे हानि न पहुंचा सके। महात्मा उसे रोज पानी से सींचते और थोड़ा-बहुत पत्तियों को सुखाकर खाद बनाकर डाल देते। देखते ही देखते कुछ ही दिन में पौधा बड़ा होने लगा। उसके पत्ते जब आपस में टकराते तो जैसे खुशी से ताली बजा रहे हों। वह बहुत खुश था।
आंधी से उसका तना खड़ा हो विचलन करने लगा। हवा तेजी से चल कर उसके पास आई और उसे डराने लगी। किशोरावस्था में पहुंचा वह पौधा आंधी की द्रुत गति से परेशान हो रहा था। कभी इधर झुकता,कभी उधर झुकता। वह घबरा-सा गया। वह थरथर कांपने लगा, डरने लगा कि मेरी नन्हीं-नन्हीं डालियां टूट कर गिर जाएंगी।
तभी नीचे से धरती की आवाज आई,-“बेटा! यह तो प्रकृति का नियम है। कभी तेज धूप,कभी बरसात और कभी आंधी अंधड़। देख!,उन्हें अपना काम करने दे। तू अपना कर। तन कर खड़ा रह,हौंसला रख, तेरी जड़ें मेरे अंदर तक फैली हुई हैं। मैंने उन्हें कसकर पकड़ रखा है। तू डर मत, निश्चिंत रह,यह तुझे डरा कर कुछ पलों में चली जाएगी। पौधे में विश्वास जागा। वह तन कर हौंसले के साथ खड़ा हो गया। आंधी आई और चली गई। कुछ सालों बाद वह विशाल वटवृक्ष बन गया। सैकड़ों पक्षियों का आवास स्थल,राहगीरों की विश्राम-स्थली और कुटिया को धूप-बरसात से बचाने वाला।
पृथ्वी ने उसे ढेर सारे गुण दिए हौंसला, विश्वास,परोपकार और सहनशीलता,…पर मुझे लगता है वह महात्मा मेरे पिता थे..। वो धरती माँ मेरी माँ और वह पौधा….हर बच्चा माता-पिता के लिए एक पौधा ही तो होता है…।

परिचय-राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

Leave a Reply