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जिंदगी के रंग…

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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कैसे-कैसे रंग दिखाती है जिंदगी,
सपने मिटाती और सजाती है जिंदगी।

हमने तो कसके के बांध के रखा था जेब में,
रेत-सी हाथों से फिसल जाती है जिंदगी।

हमको तो बद्दुआओं की आदत-सी हो गई,
तेरी दुआएं हमको सताती है जिंदगी।

एक जख्म भरा भी नहीं कि दूसरा मिला,
क्या खूब! तू मरहम लगाती है जिंदगी।

गैरों से दोस्ती कभी अपनों से जुदाई,
तू हमको अच्छा नाच नचाती जिंदगी।

काट दिये थे जो रिश्ते फिर से बढ़ गये,
क्यूँ बार-बार आजमाती है जिंदगी।

चारों तरफ तलाश किया तुझको जिंदगी,
भागती,दौड़ती,हाथ न आती है जिंदगी।

मैं खुश हूँ मेरे पास आई है जिंदगी,
रूठती है मनाती है,हँसाती है जिंदगीll

परिचय-राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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