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हो गया अवसान

देवेन्द्र कुमार राय
भोजपुर (बिहार) 
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वैरागी सन्यासी को जो हर पल कहता है शैतान,
वही चीरहरण करने बन के बैठा है भगवान।

सत्ता में कुर्सी के लिए नोच लिया नैतिकता को,
ज्ञान के सूरज का लगता अब हो गया अवसान।

सोच का सागर सूखा है आर्यावर्त के आँचल से,
वरदान नहीं,अभिशाप बना पग-पग पर विज्ञान।

हर हृदय में मेघ घनेरा ऐसा घोर प्रचण्ड घिरा है,
सरल सोच के अग्रिम पथ पर डालता व्यवधान।

कहां चलें किस ओर चलें,किस कर्म की थामूँ डोर,
विकल हृदय अब राय का सोचे करुँ क्या पानll

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