राधा गोयल
नई दिल्ली
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घर-परिवार स्पर्धा विशेष……
बड़ी मजेदार बात हुई। पत्नी नाराज थी। रोज ही सब्जी पर या अन्य किसी ना किसी बात पर चक-चक होती थी। महाराज जी खुद अपने सिंहासन पर विराजमान रहते थे और छोटी-छोटी कमी ढूँढ कर मीन-मेख निकालते थे। पत्नी अपनी मर्जी से मनचाही सब्जी भी नहीं बना सकती। क्या बनना है…कितना बनना है…वो महाराज जी के आदेश से बनना है। ठीक है,जब महाराज के आदेश से बनना है तो हम अपनी टाँग क्यों अड़ाएं ? हमारे करने के लिए तो और बहुत से काम हैं।खाना बनाना,बर्तन साफ करना,कपड़े धोना,झाडू-पोंछा करना,पौधों की देखभाल और पानी देना और कुछ अपने शौक के काम करना। हम क्यों अपना दिमाग खपाएं कि क्या बनना है और क्या नहीं। क्या सब्जी खरीदनी है। हम खरीदें तो कहा जाता है कि कितनी बार कहा है कि एक बार में तीन सौ रुपये से अधिक की सब्जी नहीं खरीदनी। अब खरीदो खुद…हमारी बला से। हम तो खाने के शौकीन हैं नहीं। हम तो जीने के लिए खाते हैं,खाने के लिए नहीं जीते। पत्नी ने मौन व्रत धारण कर लिया। अब महाराज पत्नी के मौन व्रत से परेशान हो गए।
“हाँ जी! आज क्या सब्जी बननी है ?”
“जो आदेश होगा।”
“फ्रिज में क्या-क्या सब्जियाँ हैं ?”
“जो आपने ली होंगी।” क्योंकि फ्रिज़ में सब्जियाँ रखने पर भी प्रवचन सुनना पड़ता है कि ढंग से रखनी भी नहीं आतीं। देवी जी ने वो काम भी बंद कर दिया। कौन रोजाना प्रवचन सुने…?
महाराज जी क्रिस्पर में खीरे और ककड़ी सबसे नीचे रखते हैं। कोई यह कहने की हिम्मत नहीं कर सकता कि खीरा ककड़ी सबसे ऊपर रख दिया करो क्योंकि ककड़ी तो बहुत जल्दी मुरझा जाती हैं। वैसे भी रोज ही सलाद के लिए काटनी होती है। चुपचाप बिना बोले अपना काम चला लेती है।
आजकल महाराज जी को यह पता लग गया कि तीसरी काफी मिलने से रही। देवी जी कुछ ज्यादा ही गुस्से में हैं। दो काॅफी तो दे देंगी मगर एक ही घण्टे में तीसरी बार मिलने से रही।
खुद अपने सिंहासन से उठकर अपनी काॅफी बनाते हैं। कुछ दिन पहले की बात है। काॅफी बनने रखी,इतने में सब्जी वाले की आवाज आ गई। बाहर सब्जी लेने निकले। थोड़ी देर में साॅसपैन जलने की गंध आई। देवी जी ने दौड़ कर देखा। पूरा साॅसपैन जल चुका था। पूरी रसोई में धुँआ भरा हुआ था। थोड़ी देर और न देखती तो रसोई में आग लग जाती।
महाराज जी सब्जी लेकर आए। रसोई में काॅफी बनाने गए। देखा कि साॅसपैन तो इतनी बुरी तरह जल चुका था कि साफ होना भी मुश्किल था,पर देवी जी बहुत खुश थीं। एक बार वो भी गैस पर साॅसपैन रखकर किसी काम में व्यस्त हो गई थीं। कितना प्रवचन सुनने को मिला था-“एक बार में एक ही काम किया करो। बीस बार समझाया है,मगर आज तक समझ नहीं आया। नहीं करना है तो मत किया करो। पता नहीं कौन-सी दुनिया में मगन रहती हो। जरूरी कामों की तरफ कोई ध्यान नहीं होता।”
मन में सोचा…जैसे जरूरी काम तो पड़ौसी कर जाते होंगे ना,पर कहने का कोई फायदा नहीं था। दोबारा प्रवचन कौन सुने। वैसे भी कहा गया है ना कि मौन,वाणी से अधिक वाचाल होता है।
अब पता लगेगा कि हम सारे काम भी कर लें,फोन भी सुन लें,कोई आकर बेल बजाए तो उसे भी देख लें और महाराज जी को दौड़ कर सूचित भी कर दें कि फलाँ आया है। इतनी देर में तो बिना अर्धविराम लगाए पाँच बार पूछ लिया जाता है… कौन है ? कौन है ? फिर डाँट भी मारी जाती है कि बताया नहीं जा सकता कि कौन है। अरे भई! जब देखेंगे तभी तो आकर बताएंगे ना कि कौन है। महाराज जी अपने टी.वी. की वाल्यूम कम नहीं करेंगे कि कोई बोल रहा हो तो उसकी आवाज भी सुन लें। बस अपनी बात बोलने से मतलब है।
सच में साॅसपैन जला तो बड़ा मजा आया। आप कहेंगे कि माँजना तो आपको ही पड़ेगा। आपको गुस्सा नहीं आया…?
ना… ना… बिल्कुल गुस्सा नहीं आया। सच में बड़ी खुशी हुई। रोज- रोज सब्जी की चक-चक के कारण देवी जी पहले ही कह चुकी थीं कि जो सब्जी ला दोगे…बना दूँगी। आप आदेश दें। आपका घर है। मुझे तो आज तक इस घर को कभी मेरा समझने ही नहीं दिया। अब इस उम्र में समझकर करना भी क्या है। बेहतर है कि काम करके अलग जाकर बैठ जाएं।
यहाँ तो यह हाल है कि यह पूछ लो कि खाना ले आऊँ तो उस पर भी डाँट पड़ती है। एक घण्टे का प्रवचन शुरू हो जाता है। फिर तो न पूछना ही बेहतर है। यह छूट भी तो कभी हमने ही दी थी ना। घर की सुख-शान्ति के लिए चुप लगा जाते थे। अपनी सारी खुशियाँ कुर्बान कर दी थीं लेकिन उसके बदले में मिला क्या…? एक नौकरानी की भी हमसे ज्यादा इज्जत होती है। उसको दो बात कहकर तो देखो। काम छोड़ कर भाग जाएगी। हमसे ही हर समय पूर्णता की उम्मीद रखी जाती है। कभी थोड़ा-सा दूध उफन कर निकल जाए तो आधे घण्टे का प्रवचन शुरू।
अब तो देवी जी ने भी सोच लिया और कह दिया,-“अब तो मुझे बिल्कुल नहीं सुधरना। जितनी कोशिश करोगे,जिस काम को करने के लिए सुधरने के लिए कहोगे,उसी काम को करना छोड़ दूँगी। बहुत तुम्हारी इच्छाओं पर जी-जीकर देख लिया। तुम्हारी इच्छाओं पर रोज मरते रहे…रोज रोते रहे…आँसू बहते रहे…पर तुम्हें कभी नहीं दिखाया। चुपचाप अपने काम में लगे रहे,लेकिन तुम कभी संतुष्ट नहीं हुए। अब हमें संतुष्ट करना ही नहीं है। हमें भी अपनी खुशी के लिए जीने का हक है।
लो जी…बात शुरू कहाँ से हुई थी और बातों-बातों में बात कहाँ से कहाँ पहुँच गई। बात साॅसपैन जलने की हो रही थी।
हमसे एक बार साॅसपैन जल गया था। नौकरानी के सामने पचास बार साफ करने के लिए रखा,लेकिन रत्ती भर साफ नहीं हुआ। उसे देख-देखकर रोज हमारा जी जलता था। आखिरकार सोचा कि जी जलाने से बेहतर है कि इसे बेच दिया जाए। महाराज जी को बता दिया था। कितने दिनों तक रोजाना प्रवचन सुनना पड़ा था,यह देवी जी का दिल ही जानता है। महाराज खुद भी तो सारा दिन प्रवचन ही सुनते रहते हैं।आस्था और संस्कार चैनल चलता रहता है। आजकल तो इतने अच्छे धारावाहिक आ रहे हैं। रामायण,महाभारत,चाणक्य,बुनियाद आदि। मजाल है कि कोई देखते हों। प्रवचन सुनना और प्रवचन देना प्रिय विषय है।
आजकल हम भी अड़ियल टट्टू बन गए हैं। अपनी मर्जी से जीने लगे हैं। आखिर कब तक दूसरों की मर्जी से जीते रहें। कब तक मनपसंद कार्यक्रम देखने की ख्वाहिश का गला घोंटते रहें ? कब तक अपने लिखने की ख़्वाहिशों का दम घोंटते रहें ? महाराज जी को तो बात में से बात निकालकर बात बढ़ाने में बहुत मजा आता है। अब भैया हम तो चुप ही रह कर अपने मनपसंद काम करते रहते हैं। किसी से कुछ नहीं कहते। मौनव्रत धारण किए रहते हैं,क्योंकि कुछ भी बोलेंगे तो बात में से बात निकाल कर बात-बात में बात बढ़ जाती है। हम तो इसलिए चुप ही रहते हैं।
उनसे साॅसपैन जला…हम कुछ नहीं बोले,बल्कि बहुत खुश हुए। पता था कि हमें ही साफ करना पड़ेगा। नौकरानी आ नहीं रही है। चार महीने से उल्टा हाथ टूटा पड़ा है। अँगूठा और अंगुली मिलाकर कोई चीज पकड़ने पर जान निकल जाती है। इसीलिए डॉक्टर ने ‘रिस्ट बैण्ड’ पहनने की सलाह दी थी। शुक्र है कि हाथ ‘तालाबंदी’ होने से दो महीने पहले टूटा था तो डॉक्टर को दिखाना और एमआरआई कराना संभव हो पाया था। फिज़ियोथैरेपी कराने भी रोज जाती थी। आजकल तालाबंदी की वजह से फिज़ियोथैरेपी के लिए जाना भी बंद है,लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि घर के काम भी बंद हैं। जो कसरत मशीनों के बिना घर में हो सकती है,देवी जी वह करती हैं । प्राणायाम भी करती हैं। सुबह दस से बारह बजे आरोग्य भारती का बड़ा अच्छा कार्यक्रम आता है। घर में ही विभिन्न बीमारियों का इलाज कैसे कर सकते हैं,उसके बारे में बताया जाता है। बच्चों से ‘ज़ूम ऐप’ डाऊनलोड कराया और नौ बजे तक घर के सारे काम खतम करके नौ बजे रामायण और फिर वो कार्यक्रम देखती और सुनती हैं। टूटे हाथ में पाॅलिथिन चढ़ा कर सफाई,बर्तन,खाना बनाना,पौधों में पानी देना और कपड़े धोने जैसे सभी काम हो रहे हैं। बस आजकल कपड़े इस्त्री नहीं कर पा रही। ना सही। साड़ी और ब्लाऊज़ और महाराज जी का कुर्ता पाजामा मशीन में नहीं निचोड़ती। बाकी सारे काम भी माई की तरह करती हैं। ज्यादा रगड़ने की सनक सवार नहीं है।बस साॅसपैन जरूर जैसे-तैसे करके चमका लिया है,हाँलाकि उससे हाथ का दर्द भी कुछ ज्यादा बढ़ा लिया है पर फिर भी देवी जी खुश हैं। उसने बिना कुछ कहे यह अहसास भी करा दिया है कि काम करते हुए छोटी- मोटी भूल सबसे होती है। पूरी पूर्णता किसी में नहीं होती। अब उसका असर कितने दिन रहेगा,भगवान जाने,पर देवी जी साॅसपैन जलने पर बहुत खुश हैं।