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लाख लगे हों ताले

राधा गोयल
नई दिल्ली
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लाख लगे हों ताले,यादें आ ही जाती हैं,
बंद झरोखों से भी यादें अंदर आती हैं।

अंदर आती हैं,ये यादें बड़ा रुलाती हैं,
किन्तु एक उम्मीद की किरण साथ में लाती हैं।

जहाँ सूर्य भी झाँक न पाए,वहाँ पहुँच जातीं,
कभी हँसाकर कभी रुलाकर,हिम्मत दे जातीं।

कानों में फुसफुसाकर आशा से झोली भर जातीं,
समस्याओं से मत घबराना,मुझसे कह जातीं।

इन्हीं समस्याओं में समाधान भी छिपा हुआ,
लेखन का तेरा शौक बंद कमरे में छिपा हुआ।

यहाँ शान्ति से बैठ के जो लिखना चाहे लिख ले,
कोई नहीं है यहाँ,तेरे चिन्तन में दखल करे।

उम्मीद का दामन थामे रख,तू हिम्मत न खोना,
जीवन का सार यही है,कुछ पाना है,कुछ खोना।

ये बंद द्वार भी खुलेगा,बस तू धीरज बाँधे रख,
साहित्य सृजन करके यादों को तू सहेज कर रख।

इस बंद द्वार में ही शायद तेरा सौभाग्य छिपा हुआ,
दिल में छिपे घाव लिखने का तुझको समय मिला।

बंद द्वार को देख,न दिल में रखना कोई गिला,
शायद तेरी ही चाहत का ये ऐसा सिला मिला।

समय चक्र कब पलट जाए,कौन समझ पाता है ?
बंदीगृह में यशगान छिपा,ये समय बताता है॥

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