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हो रही भोर

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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होने को है भोर,
धीरे-धीरे तिमिर जा रहा
पकड़ रात की डोर।
अंगड़ाई लेती-सी,
धरा उठी है जाग
दिनकर भी गतिमान हुए,
पहन के पीली पाग।
लदपद अमराई में,
कोयल कूक रही है
शीतल मंद पवन,
इठलाती झूम रही है।
भंवरे गुन-गुन करके,
फूलों का आलिंगन करते
अलसाए-सकुचाए पुष्प,
हो के मस्त मगन खिल उठते।
प्रकृति ने सोलह श्रृंगार किए,
स्वागत में आरत-थाल लिए
सूर्य अश्व-रथ पर हो सवार,
फैला रहा स्वर्ण -किरण उपहार।
पाखी सुमधुर ध्वनि से,
दिग-दिगंत कर रहे शोर हैं
स्वागत है! स्वागत है!
हो रही भोर है,

हो गई भोर हैll

परिचय–राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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