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अस्तित्व की खोज

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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अस्तित्व है क्या ? किसी चीज के होने का बोध,कुछ भी होने का भाव,हैसियत या मौजूदगी। भूतकाल में,वर्तमान से या भविष्य के लिए अस्तित्व।
हर जीव की तरह हमारी आँख खुलते ही सोच दिमाग में आती है-मैं कौन हूँ ? कहाँ और कैसे आ गया ? और इसकी खोज शुरू हो जाती है। अलग-अलग मायनों में,अलग अस्तित्व की खोज।
प्रकृति और सृष्टि के अस्तित्व की खोज ने दो धारणाओं को जन्म दिया-एक आध्यात्मिक और दूसरी वैज्ञानिक। हमारा एक ईश्वरीय सत्ता से अस्तित्व माना जाता है। जो होता है,उन्हीं द्वारा। हमारी इस विचारधारा के अस्तित्व के हिस्सेदार हैं-ईश्वर,उनकी रचित सृष्टि और हमारा भाग्य। इसी यात्रा क्रम में, ईश्वर के अस्तित्व की खोज,मानव उददेश्य बना। यहीं आध्यात्मिकता के साथ दार्शनिकता हमारे अस्तित्व की खोज में सहायक बनी। दूसरी तरफ अस्तित्व की खोज में विज्ञान की यात्रा भी जारी रही और है।
हर चीज का अस्तित्व और प्रचलित विचार,सोच,सत्य और प्रमाणिकता की कसौटी पर परखे जाने लगे। यहाँ हैसियतअस्तित्व का नया पर्यायवाची बनी।पूरे ब्रह्मांड में धरती की हैसियत एक बिंदु के समान पायी गयी और उस धरती पर एक मनुष्य की हैसियत या अस्तित्व, है ही कहाँ ? पर मनुष्य इस अपने अस्तित्व को क्यों कर मानने लगा ? अस्तित्व को मानव के इर्द-गिर्द समेटने की परम्परा आरंभ हुई। परिभाषा उभरी कि आपका अस्तित्व इस बात पर निर्भर करता है कि आप दूसरों को क्या देते हैं और दूसरे आपके लिए। अर्थात अस्तित्व,अहम् और त्वम् में सिमटने लगा। सुधारवादियों ने अस्तित्व में वहम् को भी महत्वपूर्ण जगह दी।
हजारों साल से इसी अस्तित्व को ढूंढते हुए मानव अपने परिवार,समाज और देश के प्रति अपने कर्तव्यों को,अस्तित्व और अपने मध्य,जुड़ाव को सबसे सर्वोपरि मानने लगा। इस अस्तित्व की खोज में जन्म लेते ही,मेरा अस्तित्व जगत में आया। मेरे माता-पिता और मेरा नाम,सबसे पहले मेरे अस्तित्व को, बताने लगा। शिक्षकों ने मेरे अस्तित्व को पंख दिए। इस समाज ने मुझे इस रूप में स्वीकारा। मैं समाज का अंग बन गया….अस्तित्व। हर चेहरा मुझे जानने लगा और मैं उनका…अस्तित्व। इस देश के लिए,कुछ करने की प्रेरणा जगी…अस्तित्व।
बुढ़ापे से मेरा अस्तित्व सिमटना शुरू होगा और एक दिन समाप्त भी। मेरी मृत्यु के बाद भी मेरा अस्तित्व तब तक बना रहेगा,जब तक लोग मुझे याद करते रहेंगे। मेरा अस्तित्व वहाँ तक है,जहाँ तक मैं,परिवार,समाज और प्रकृति से प्रभावित होता हूँ या वो मुझसे प्रभावित होते हैं। फिर चाहे वह भौतिक रूप हो, मानसिकता हो या काल्पनिक हो।

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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