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बहुत भाग लिए,अब ठहरो

पुखराज छाजेड़
जयपुर(राजस्थान)
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जिसने सारी दुनिया में तांडव मचा रखा है,
उसका हमने मजाक बना रखा है
दुनिया खौफजदा,गमजदा,संजीदा है,
हम तो बस ‘कोरोना’ के चुटकलों पर फिदा हैं।

कहूं जो उसको जान तो लो,
बहुत घूमे जरा विश्राम तो लो
थोड़ा धीरज से भी काम तो लो,
बहुत खेले,प्रभु का नाम तो लो।

कर्म हमारा ध्येय रहा,
अकर्म सदा अज्ञेय रहा
आलस से हम दूर रहे,
कर्मठता में चूर रहे।

माना तुम हो थके नहीं,
किसी विपदा में भी डरे नहीं
पुरुषार्थ में रहा विश्वास सबका,
है संवेदनशील हमारा तबका।

बहुत भाग लिए,अब ठहरो,
जो वृद्ध हैं,घर में गहरो
पीढ़ी को उतराधिकारी करो,
वानप्रस्थ की तैयारी करो।

पर…
आज आलस उपयोगी बना,
सामाजिक होना भी भारी बना
आलस (आराम) के मूल्य को यदि जाना है,
तो,नहीं कहीं पर जाना है
सामाजिकता केवल बहाना है,
पर, एकांतवास अपनाना है।

अफवाहों से डरे नहीं,
कर्तव्य पथ से डिगे नहीं
जो हो जरूरी जानना है,
सरकारी सलाह को मानना है।

कर्तव्य अपना जो निभा रहे,
देश के अदभुत सैनिक हैं
लाखों नमन हैं उनको,
वो मानवता के सेवक हैं।

हम नहीं रहे संहारक हैं,
रहे हमेशा पालक हैं
खुद को यदि आज बचा लेंगे,
फिर जग को भी संभालेंगे।

इंसान सोचता,
वो प्रकृति से बड़ा।
पता नहीं,
वक्त किस करवट खड़ा!!

परिचय-पुखराज छाजेड़ का जन्म ३ जुलाई १९६० को ग्राम पादूकलां(जिला नागौर, राजस्थान)में हुआ है। वर्तमान में जयपुर स्थित अजमेर रोड पर आपका निवास है। भाषा ज्ञान हिंदी,राजस्थानी(मारवाड़ी) एवं अंग्रेजी का भी रखने वाले श्री छाजेड़ की शिक्षा-बी.कॉम. तथा कार्यक्षेत्र-प्लास्टिक दाना उत्पादक का है। सामाजिक गतिविधि में आप सक्रिय होकर कोषाध्यक्ष(भिक्षु साधना केंद्र समिति)हैं। परम्पराओं व किलों के राज्य राजस्थानवासी श्री छाजेड़ की लेखन विधा-काव्य है। लेखन क्षेत्र में कुछ रचनाएं वेब जाल पर छपी हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज चेतना व शौक है। आपकी नजर में पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारी सिंह ‘दिनकर’,जय शंकर प्रसाद एवं मैथिली शरण गुप्त हैं। प्रेरणापुंज-सामाजिक जीवन ही है। आपकी विशेषज्ञता-कविता लेखन,पत्र-व्यवहार तथा लेखांकन है। देश व हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘मेरी माँ मेरी मातृभाषा हिंदी,हिंदी मेरी आत्मा ,हिंदी मन का चैन,
हिंदी की भक्ति करूँ,दिल से दिन औ रैन।
हिंदी के गुण गाऊँ सदा,हिंदी सुख की खान,
हिंदी से होता हमें,निज गौरव का भान।
दसों दिशाएं गूँजे सदा,हिंदी के व्याख्यान,
माँ भारती स्वयं करे,हिंदी का सम्मान।
आज वर दे माँ शारदे,भर दे भक्ति का मेवा,
तन मन धन औ प्राण से,मैं कर सकूं हिंदी की सेवा।
मैं कर सकूं हिंदी की सेवा…॥ ‘

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