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होली-नई शुरूआत का संदेश

दिपाली अरुण गुंड
मुंबई(महाराष्ट्र)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

हिंदू काल गणना के अनुसार फागुन ऐसे तो अंतिम माह है,परंतु वह हमेशा नई शुरुआत की सीख देता है। फागुन की पूर्णिमा-होली के नाम से जानी जाती है। होली से संबंधित हिरण्य कश्यप तथा भक्त प्रहलाद की कहानी तो सब जानते हैं,जो हमें सिखाती है कि,हमें दुष्ट प्रवृत्ति को अनिष्ट रीतियों-प्रथाओं को होली में जलाकर नई शुरुआत करनी चाहिए। होली के दूसरे दिन लोग अपने सारे गिले-शिकवे छोड़कर एक-दूसरे को प्यार के रंगों में रंगते हैं।
सालभर में हमसे जो गलतियाँ हुई,उसे सुधारकर व उससे कुछ नया सीखकर हमें प्रगति के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए,यही सीख यह त्यौहार हमें देता है। हर साल बड़े ही उत्साहपूर्वक यह त्यौहार भारत में मनाया जाता है। इसकी परम्परा बहुत पुरानी है। कहा जाता है रघुवीरा अवध में तो कन्हैया गोकुल में भी यह उत्सव मनाते थे।
भगवान श्री कृष्ण की होली के बारे में यह आख्यायिका कही जाती है कि,भगवान कृष्ण अर्थात कन्हैया सांवले थे,इसलिए वह मैया यशोदा से हमेशा पूछते थे कि,’राधा क्यों गोरी…मैं क्यों काला ?’ तब मैया यशोदा उन्हें मजाक में कहा करती थी कि,’तुम्हें राधा जिस रंग में मन को भाती है,वह रंग उसे लगा दो।’ इस तरह गोकुल में कन्हैया बांके बिहारी की होली की शुरुआत हुई।
आज के स्वार्थपरायण युग में यह त्योहार विशेष महत्व रखता है,जो लोगों को काले-गोरे पर ऊंच-नीच की भावना भुला कर खुशी-आनंद-उत्साह के रंगों में रंगना सिखाता है। हर उम्र के लोग अपने दुख-चिंता छोड़कर यह त्यौहार बड़ी ही धूम-धाम से मनाते हैं। कोविड की इस विशेष स्थिति में हम इस साल होली तो नहीं मना पाएंगे,लेकिन एक-दूसरे से दूर रहकर भी खुशियाँ जरूर बांट सकते हैं।

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