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काश! लहर ही होती…

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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डूबती,उतरती विशाल सागर की तरंग में,
झूमती,बावली बन चूमती आसमां कभी
बिखर-बिखर जाती सागर की लहर-लहर में,
किनारे की कभी तमन्ना ही ना होती।

अठखेलियाँ करती नन्हीं-नन्हीं बूंदों से मिल,
नाचती जल तरंग की धुन पर विधुन
मिल जाती फिर सागर के संग में,
थक कर सो जाती,खो जाती।

घूमती-झूमती-इठलाती,तूफानों की उमंग,
कभी चाँद पकड़ती,कभी सूरज से उलझती।
खेलती सितारों से,हाथों में मोती होते,
काश! कि लहर और लहर ही होती…॥

परिचय-ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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