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चलो दिल्ली घेरें…

नवेन्दु उन्मेष
राँची (झारखंड)

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सबसे आसान काम है दिल्ली घेरना। जिसे देखो दिल्ली घेरने चला आता है। इन दिनों अन्नदाता भी दिल्ली घेरने के लिए चले आए हैं और कह रहे हैं कि वे अपनी मांगों के पूरी होने तक दिल्ली में डटे रहेंगे। डटे रहने तक लंगर का भी पूरा इंतजाम उनके पास है। सरकार उनसे कह रही है कि जिस कानून को उसने संसद से पारित किया है,उससे किसानों को पूरा फायदा होगा लेकिन किसान हैं कि मानने को तैयार नहीं हैं। एक किसान ने तो यहां तक कह दिया कि जिस तरह से हम खेतों की मेड़ घेरते हैं,उसी तरह से दिल्ली को घेरेंगे। दिल्ली घिर जाएगी तो समझो कि,सरकार घिर जाएगी…और सरकार घिर गई तो समझो मांगें पूरी हो गई।
कविवर गोपाल सिंह नेपाली ने भी अपनी कविता में कहा है कि ’ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से,चरखा चलता है हाथों से शासन चलता तलवार से…‘ लेकिन अब वैसी सरकार कहां रही,जो चरखा भी चलाए और तलवार भी। अब तो दिल्ली घेरते ही सरकार आंदोलनकारियों को वार्ता
के लिए बुला लेती है और किसी तरह उन्हें समझा-बुझाकर चलता कर देती है। आंदोलनकारी समझते हैं कि सरकार उनकी मांगों के आगे झुक गई है और वे खुश होकर अपने गंतव्य की ओर रवाना हो जाते हैं।
अब किसान भी दिल्ली घेरने आए हैं तो वे भी खेतों की मेड़ की तरह दिल्ली को घेर रहे हैं। देखना यह है कि,वे कब तक दिल्ली को घेरे रखते हैं। खतरा इस बात का भी बना हुआ है कि,कहीं वे दिल्ली को खेत समझकर हल न चला दें। अगर दिल्ली में हल चल गया तो पूरे देश में हलचल मच जाएगी। तब विदेशी मीडिया में खबरें चलेगी कि दिल्ली देश की राजधानी न होकर आंदोलनकारियों का खेत हो गई है,जहां आंदोलन की आड़ में मांगों पर हल चलाया जाता है।
किसानों के आंदोलन का रुख क्या होगा,कोई नहीं जाता। किसान कहीं दिल्ली में पराली जलाने लगे तो दिल्ली के पर्यावरण का क्या होगा,कोई नहीं जानता।
खैर,अब जब किसान दिल्ली आ ही गए हैं तो सरकार को चाहिए कि अन्नदाता का जम कर स्वागत करें,ताकि वे गाँव लौटें तो लोगों को कह सकें कि सरकार ने उनकी जमकर आवभगत की।
वैसे मानना है कि,दिल्ली घेरने और आंदोलन करने के लिए ही बनी है। दिल्ली है तो आंदोलन है,दिल्ली है तो मांगें हैं। दिल्ली है तो नेताओं से घिरी है। दिल्ली है तो जाम की समस्या है। दिल्ली है तो पर्यावरण की समस्या से घिरी है। दिल्ली है तो कोरोना की समस्या से घिरी है..। सारी समस्याओं की जड़ दिल्ली है…। समस्याओं का निराकरण भी यहीं से होता है और समस्याएं भी यहीं पैदा होती हैं…।

परिचय–रांची(झारखंड) में निवासरत नवेन्दु उन्मेष पेशे से वरिष्ठ पत्रकार हैं। आप दैनिक अखबार में कार्यरत हैं।

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