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खो गई मानवता

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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कल-कल करता कलियुग,मानव शरीर अब मशीन हो गए,
खो गई मानवता,चलते-फिरते रोबोट हो गए।

नेता हो या अभिनेता,कुर्सी सबको प्यारी है,
पद पाने की होड़ में,भावशून्य हो गए।
खो गई मानवता,चलते-फिरते रोबोट हो गए….॥

जला दीं बस्तियां,हर तरफ लाचारी और बेगारी है,
घर उनके भवन,होटल के क्षेत्र हो गए।
खो गई मानवता,चलते-फिरते रोबोट हो गए…॥

हर तरफ मारामारी है,फैली ये महामारी है,
शक्ति पाने को जग में,जैविक विषाणु हथियार हो गये।
खो गई मानवता,चलते-फिरते रोबोट हो गए…॥

मानव ही मानव को मार रहा,कैसी अनदेखी लाचारी है,
अपने भी शत्रु नज़र आते हैं,कैसी अनबूझ ये पहेली है।
अपनों से भी दूर रहने को मजबूर हो गए।
खो गई मानवता,चलते-फिरते मानव रोबोट हो गये…॥

इंसान हो,न इंसानों को अनदेखा कीजिये,
घर में रहकर मानवता का परिचय दीजिये।
मैं स्वस्थ हूँ सोच,दुश्मन को न मौका दीजिये,
दूर से नमस्ते,अतिथि के सत्कार हो गये।
खो गई मानवता,चलते-फिरते मानव रोबोट हो गए॥

परिचय–गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनामगीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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