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मेरी तमन्ना

डॉ.विजय कुमार ‘पुरी’
कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) 
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लड़की वह गोरी होय,भरी हुई तिजोरी होए,
पढ़ी भरपूर होए भई,हो जैसे कोई नायिका।
रहे मुझको निहारती,पपीहे-सी पुकारती,
हो जाऊं मैं शरारती,बन भँवरा कली काl
तिरछे से नैन हों,मीठे-मीठे बैन हों,
दिन हो कि रैन हो,मेरी बने वही राधिकाll

रूप-रंग खरा हो,यौवन अंग भरा हो,
मिलावट न जरा हो,मेरा बिगड़े ज़ायका।
रुत भी सुहानी हो,वह मेरी प्रेम दीवानी हो,
कोई उसका न सानी हो,ऐसी मेरी साधिका।

रंग है उमंग है,उठी मन में तरंग है,
भीगा-भीगा अंग है,मौका जो है होली का।
धूम हो धमाल हो,हाथों में गोरे गाल हों,
थाल में गुलाल हो और फूलों की हो वाटिका।
मुख में मिठास हो,सुख का उजास हो,
फगुनाई मधुमास हो तो खिले फूल दिल काll

नाचने में चपला हो,सेहत से सबला हो,
पति रूप तबला हो,मौका हो रियाज़ का।
दाएँ-बाएं तकधिना-धिन तकधिन-तकधिन,
संगत में सास हो,तो बचे क्या जमाई का।

उससे ही शादी हो,घर में आबादी हो,
बेटे चाहे बारह हों,पर पैदा न हो बालिका।
चंड प्रचण्ड लिंग भेद पर दण्ड दे वह,
तोड़ दे घमण्ड मेरा,रूप धर काली काll
(विशेष-रचना का उद्देश्य मात्र हास्य है,किसी की भावना को आहत करना नहीं है।)

परिचय-डॉ. विजय कुमार का साहित्यिक उपनाम ‘पुरी’ है। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के ग्राम पदरा (तहसील पालमपुर)में स्थाई रुप से बसे हुए डॉ. कुमार का जन्म जिला कांगड़ा के पालमपुर में १२ अक्टूबर १९७३ को हुआ। आपको हिंदी,अंग्रेजी,हिमाचली पहाड़ी भाषा का ज्ञान है। पर्यटन के धनी राज्य हिमाचल वासी ‘पुरी’ की पूर्ण शिक्षा पी.एच-डी.,एम.फिल. एवं नेट,स्लेट,बीएड है। पेशे से प्राथमिक शिक्षक हैं। सामाजिक गतिविधि में संस्था के पदाधिकारी हैं। लेखन विधा-गीत,कविता,कहानी एवं समीक्षा है। ‘पहचान’ काव्य संग्रह सहित ‘मालती जोशी के कथा साहित्य में मध्यवर्गीय चेतना’ समीक्षात्मक पुस्तक प्रकाशित है तो ‘कांगड़ा के लोकगीत-जीवनशैली एवं रीति-रिवाज’ अनुसंधानात्मक पुस्तक का सम्पादन आपके नाम है। आप २ हिंदी पत्रिका का सम्पादन भी देखते हैं। इनकी रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपके साहित्यिक खाते में-राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान (हिमाचल सरकार- २०१९),अकादमी अवार्ड (जालंधर) एवं ‘साहित्यश्री सम्मान’ आदि हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समाज सापेक्ष रचनाकर्म है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-तुलसीदास,मैथिली शरण गुप्त हैं,तो प्रेरणापुंज-माता-पिता हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“अपने ही घर में हारती,ये हिन्दी क्यों लाचार है।
यह भाषागत नीति नहीं,व्यापार ही व्यापार है॥”

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